हावड़ा की गलियों में छिपा २५० साल पुराना तिब्बती मठ, रहस्य और संघर्ष की कहानी

कोलकाता: बंगाल के हावड़ा जिले की घुसुड़ी गलियों में एक ऐतिहासिक और रहस्यमयी स्थल है — भोट बागान मठ, जिसे स्थानीय लोग महाकाल मठ भी कहते हैं। यह मठ २५० साल पुराना है और हिमालय के बाहर का सबसे प्राचीन तिब्बती बौद्ध मठ माना जाता है।
मठ तक पहुँचने के लिए गोसाईं घाट की गलियों की भूलभुलैया से होकर गुजरना पड़ता है। गूगल मैप्स पर इसे ढूंढना मुश्किल है, इसलिए स्थानीय लोगों की मदद जरूरी है।
संघर्ष और शांति की कहानी:
भोट बागान का इतिहास भूटान साम्राज्य और कूचबिहार रियासत के बीच संघर्ष से भरा हुआ है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने कूचबिहार के राजा की मदद करने का निर्णय लिया था। इस समय पंचेन लामा ने मध्यस्थता की और हिंदू भिक्षु पूरन गिरी गोसाईं को भारत के मैदानों में तिब्बती शैली का मठ बनाने के लिए भेजा।
सन् १७७५ में ३० बीघा जमीन पर यह मठ बनाया गया, जो बाद में १५० बीघा तक फैल गया।
डकैती और विनाश:
१७९५ में डकैतों के हमले ने मठ को बर्बाद कर दिया। पुरंगीर ने बहादुरी से विरोध किया, लेकिन वे मारे गए। डकैतों ने मठ की नौ सिर, १८ पैर और ३६ भुजाओं वाली महाकाल की बहुमूल्य मूर्ति लूट ली। आज उसी स्थान पर देवी तारा की मूर्ति है।
सन् १९०५ में गोसाईं वंश समाप्त हो गया और वर्तमान में मठ न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर के नियंत्रण में है। दैनिक पूजा–अर्चना हिंदू परंपरा अनुसार जारी है।
भविष्य की संभावनाएँ:
मठ परिसर में दो शिव मंदिर और कई समाधि जैसी संरचनाएँ हैं, जो जीर्ण अवस्था में हैं। स्थानीय नेता रियाज अहमद का कहना है कि भोट बागान को विरासत आयोग के अधीन संरक्षण देकर भविष्य में प्रमुख पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है।

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