विहिप का २४ घंटे का सिलीगुड़ी बंद सफल, बोखलाहाट में सड़कों पर दिखी पुलिस

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सिलीगुड़ी: माटीगाड़ा तांबाजोत में हिंदुओं के घरों और दुकानों पर सामूहिक हमले के खिलाफ २४ घंटे का सिलीगुड़ी महक बंद पूरी तरह सफल रहा। बंद का आह्वान विश्व हिंदू परिषद उत्तर बंगाल प्रांत ने किया था। बंद के दौरान जहां धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा था, वहीं कानून-व्यवस्था के नाम पर पुलिस सड़कों पर थी। पुलिस बंद समर्थकों के साथ किसी बड़े आतंकी संगठन के आतंकियों जैसा व्यवहार कर रही थी। यह मैं या आम बात नहीं बल्कि ली गई तस्वीर खुद बयां कर रही है। जिस तरह से बंद का समर्थन सभी संस्थाओं और व्यापारिक प्रतिष्ठानों ने किया, उससे समाज और संबंधित लोगों ने तय कर लिया है कि वे अब और हिंसा बर्दाश्त नहीं करेंगे।
बिहिप और भाजपा के लक्ष्मण वंशल, सुशील रामपुरिया, राकेश अग्रवाल, अनूप मंडल, सीताराम डालमिया, दिलीप दास, कन्हैया पाठक, राजू साह, संचित देवनाथ, बापी पाल, कृष्णा बर्मन आदि का कहना है कि हमारी लड़ाई किसी जाति, धर्म के खिलाफ नहीं है। हम इस्लामी जिहादी मानसिकता के खिलाफ हैं। इस्लाम की नींव एकेश्वरवादी आस्था पर आधारित है। यह मानना ​​कि ‘जो अल्लाह पर विश्वास नहीं करता वह जीने के लायक नहीं है’ न केवल कट्टरता का सबूत है बल्कि सभ्यता विरोधी विचारधारा का भी सबूत है।
छद्म धर्मनिरपेक्षता – भारतीय समाज का सबसे बड़ा धोखा कश्मीर में हिंदुओं की हत्या पर मीडिया चुप है, नरसंहार पर मुस्लिमों ने असहमति जताते हुए जुलूस निकाला। पहलगाम में हिंदू तीर्थयात्रियों की हत्या के बाद बुद्धिजीवी चुप हैं। वे ‘जिहाद’ शब्द से दूर रहते हैं लेकिन ‘हिंदुत्व’ से डरने की आदत रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने १९८४ के सिख विरोधी दंगों को स्वतः मान्यता दी लेकिन कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को चुप करा दिया। यह चुप्पी न केवल निष्क्रियता की संरक्षक बन गई है बल्कि अन्याय की भी संरक्षक बन गई है। धार्मिक संस्थाएँ एनजीओ फंडिंग एजेंसियों के अलावा सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे देश भी भारत में जिहादी प्रचार को वित्तपोषित करते हैं।
उनके एजेंट, कट्टरपंथी मौलवी और सोशल मीडिया पर सक्रिय प्रभाव युवाओं में धार्मिक घृणा भरते हैं। जादवपुर, जामिया और एएमयू जैसे संस्थानों में भारत विरोधी और जिहादी विचारधारा खुलेआम पनपती है। यह राष्ट्र को भीतर से खोखला करने की एक सुनियोजित साजिश है। संवेदनशीलता, रणनीतिक प्रतिरोध और आर्थिक और सामाजिक प्रतिशोध ही काफी नहीं है। आज का भारत सिर्फ एक राष्ट्र नहीं, बल्कि एक वैचारिक राष्ट्र, एक राज्य है, जिसकी आत्मा एक सनातन संस्कृति में बसती है। जब उस आत्मा पर लगातार धार्मिक आतंकवाद का हमला होता है, तो कड़ी निंदा या मोमबत्ती जलाना ही काफी नहीं है।
अब समय आ गया है कि राष्ट्र की नीति और समाज की चेतना दोनों का उस स्तर पर जवाब दिया जाए, जो युद्ध जैसी सोच की मांग करता है। पहला कदम आर्थिक प्रतिबंध और सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। जिहादी मानसिकता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन और वित्त पोषण करने वाले क्षेत्रों, संस्थानों और व्यापार प्रणालियों पर कड़े वित्तीय प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई एनजीओ या मुस्लिम शिक्षण संस्थान ऐसे प्रचारकों और कट्टरपंथियों को खुले तौर पर मंच प्रदान करता है, तो संस्थान की मान्यता, वित्त पोषण और कर छूट तुरंत समाप्त कर दी जानी चाहिए। इसके अलावा, भारत में धार्मिक कट्टरपंथ को वित्तीय आधार प्रदान करने वाले अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक फंड और हवाला नेटवर्क की विस्तृत जांच होनी चाहिए।

आज भी सऊदी अरब, तुर्की और कतर जैसे देशों से आने वाले ‘जकात’ और ‘वक्फ फंड’ का एक बड़ा हिस्सा सीधे तौर पर जिहादी एजेंडे को मजबूत करता है। भारत की जांच एजेंसियां ​​इस पर नाममात्र की कार्रवाई क्यों कर रही हैं? क्या यह संस्थाओं में ही नहीं बल्कि समाज में सक्रिय कथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों और नेताओं में भी छद्म धर्मनिरपेक्षता के डर का नतीजा नहीं है, जिन्होंने जिहाद को ‘प्रतिक्रिया’ और कट्टरवाद को ‘प्रतिरोध’ कहा। यह नैतिक पतन अब राष्ट्र के लिए असहनीय होना चाहिए। हम सभी बंद समर्थकों का दिल की गहराइयों से समर्थन करते हैं।

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