काठमांडू: नेपाल के आठ प्रमुख नागरिक समाज नेताओं ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की हालिया राजनीतिक गतिविधियों की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि उनके ये कदम नेपाल के संविधान और लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकते हैं। सोमवार को जारी एक संयुक्त बयान में इन नेताओं ने उनकी राजतंत्र को पुनः स्थापित करने की कोशिशों पर चिंता जताई, जिसे भारत के धार्मिक कट्टरपंथियों का समर्थन प्राप्त है। उनका मानना है कि इससे देश में अराजकता और राजनीतिक उथल-पुथल पैदा हो सकती है।
संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में मोहना अंसारी, कनक मणि दीक्षित, राजन कुइकेल, रीता परियार, चरण प्रसाई, सुशील प्याकुरेल, दिनेश त्रिपाठी और हीरा विश्वकर्मा शामिल हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि २०१५ का संविधान, जिसने नेपाल को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया, लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सामाजिक अनुबंध है। संघवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र जैसे इसके सिद्धांतों को कमजोर करने की कोई भी कोशिश राष्ट्र को अस्थिर कर सकती है और इसकी प्रगति को अपूरणीय क्षति पहुंचा सकती है।
बयान में ज्ञानेंद्र शाह के भारत के राजनीतिक प्रतिष्ठान, विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ संबंधों पर प्रकाश डाला गया, जिन्होंने नेपाल में राजतंत्र की बहाली के विचार का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है। समूह ने तर्क दिया कि ऐसा कदम नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता को कमजोर करेगा, जिससे देश भारत की दक्षिणपंथी राजनीति के प्रभाव में आ सकता है।
इसके अलावा, बयान में जनता को २००५ में ज्ञानेंद्र शाह के सत्तावादी शासन की याद दिलाई गई, जब उन्होंने संसद को भंग कर दिया था और फरमान से शासन किया था। हस्ताक्षरकर्ताओं ने चेतावनी दी कि उनकी सत्ता में वापसी नेपाल को पंचायत युग के अधिनायकवादी शासन की ओर ले जाएगी, जिससे पिछले एक दशक की लोकतांत्रिक उपलब्धियां खत्म हो जाएंगी।
समूह ने सभी राजनीतिक नेताओं और नागरिकों से राजतंत्र को पुनर्जनन देने के किसी भी प्रयास का विरोध करने का आह्वान किया और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, जो पिछले दस वर्षों से नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य को परिभाषित करते आए हैं।