गान्तोक: आज, ३० अगस्त, १९४६ को जन्मे बाबा हरभजन सिंह की ७९वीं जयंती है। नाथूला के संत के नाम से प्रसिद्ध बाबा हरभजन सिंह को पूर्वी सिक्किम में भारत और चीन की नाथूला सीमा पर प्राणों की आहुति देने वाले एक सैनिक के रूप में याद किया जाता है।
भारत के इतिहास में ऐसे कई वीर योद्धा हैं जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। बाबा हरभजन सिंह एक अमर वीर थे, जिन्हें शहादत के बाद भी मातृभूमि की रक्षा करने वाले एक अद्वितीय सैनिक के रूप में पूजा जाता है। भारतीय सेना में उनकी उपस्थिति केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक जीवंत आस्था है। अपनी शहादत के बाद भी, उनकी आत्मा आज भी चीन सीमा पर पहरा दे रही है, सैनिकों को सतर्क कर रही है और राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित कर रही है। कर्तव्य के प्रति उनकी अटूट निष्ठा, रहस्यमयी किंवदंती और असाधारण सम्मान उन्हें भारतीय सेना के इतिहास में अमर बनाते हैं। बाबा हरभजन सिंह सिर्फ एक सैनिक नहीं थे, बल्कि देशभक्ति और बलिदान की जीती जागती मिसाल थे, जिनकी कहानी आज भी हर भारतीय के दिल में गर्व और सम्मान जगाती है।
प्रारंभिक जीवन और सेना में भर्ती:
हरभजन सिंह का जन्म ३० अगस्त, १९४६ को ब्रिटिश भारत के पंजाब के गुजरांवाला शहर(अब पाकिस्तान में) में हुआ था। वह एक साधारण परिवार से थे और शुरू से ही देशभक्त थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, ९ फरवरी, १९६६ को, वह २३वीं पंजाब रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना में शामिल हो गए। वह एक अनुशासित, मेहनती और ईमानदार सैनिक थे, जिन्होंने पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाया। रहस्यमय मौत:
हरभजन सिंह की पोस्टिंग भारत-चीन सीमा पर सिक्किम में थी। यह इलाका बेहद ठंडा, दुर्गम और खतरनाक माना जाता है। ४ अक्टूबर, १९६८ को एक दिन जब वह अपने कुछ साथियों के साथ जरूरी सामान की आपूर्ति करने जा रहे थे, तो रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गए आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, फिसलकर गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। हालाँकि, इसके बाद जो हुआ उसने सभी को चौंका दिया। बाबा हरभजन सिंह का चमत्कारी दर्शन:
ऐसा कहा जाता है कि हरभजन सिंह ने एक साथी सैनिक के सपने में दर्शन दिए और अपनी मृत्यु की सच्चाई का संकेत देते हुए कहा कि उनकी समाधि एक विशेष स्थान पर बनाई जानी चाहिए। जब यह बात वरिष्ठ अधिकारियों को बताई गई, तो उन्होंने इसे महज एक संयोग माना, लेकिन जब कई सैनिकों ने इसी तरह के अनुभव साझा किए, तो सेना ने इसे गंभीरता से लिया। उनकी इच्छा के अनुसार, उनकी समाधि उसी स्थान पर बनाई गई जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी। इसके बाद से भारतीय सैनिक उन्हें ‘बाबा हरभजन सिंह’ मानने लगे और उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने लगे। कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक बाबा हरभजन सिंह की आत्मा वहाँ निवास करती है और भारतीय सैनिकों की रक्षा करती है। सैनिकों की सुरक्षा और अदृश्य गश्त:
भारतीय सैनिकों का मानना है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। कई बार सैनिकों ने अनुभव किया है, कोई अदृश्य शक्ति उनकी मदद कर रही है जब भी चीन और भारत के बीच फ्लैग मीटिंग होती है, चीनी अधिकारी ख़ास तौर पर बाबा हरभजन की कुर्सी खाली रखते हैं।
रहस्यमय गश्त:
ऐसा माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह आज भी भारत-चीन सीमा पर गश्त करते हैं और किसी भी दुश्मन गतिविधि से पहले सैनिकों को चेतावनी देते हैं। कई बार सैनिकों को उनके बूट के निशान और अन्य अदृश्य संकेत मिले हैं। कई सैनिकों ने उनके दर्शनों के बारे में बताया है और कहा जाता है कि कई बार भारतीय सेना उनके संकेतों के कारण संभावित खतरों से बचने में कामयाब रही है।

चमत्कारी भविष्यवाणियाँ:
कई सैनिकों ने दावा किया है कि बाबा हरभजन सिंह उनके सपनों में आए और उन्हें संभावित खतरों के बारे में पहले ही आगाह कर दिया, ताकि सैनिक समय रहते सतर्क हो सकें।
बाबा हरभजन सिंह का मंदिर: बाबा हरभजन सिंह की समाधि सिक्किम के पास नाथूला के पास स्थित है, जिसे ‘बाबा हरभजन सिंह मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भारतीय सेना और स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है। यहाँ हर दिन भारतीय सैनिक बाबा का अभिवादन करते हैं और उन्हें पूरा सम्मान देते हैं।
सेना द्वारा मंदिर का रखरखाव: इस मंदिर का रखरखाव भारतीय सेना द्वारा किया जाता है और यहाँ प्रतिदिन पूजा-अर्चना की जाती है। सैनिकों की आस्था:
सैनिकों का मानना है कि बाबा हरभजन सिंह की कृपा उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी साहस और सुरक्षा प्रदान करती है।
विशेष परंपरा:
हर साल १५ सितंबर को बाबा हरभजन सिंह के नाम पर एक विशेष समारोह आयोजित किया जाता है, जिसमें भारतीय सेना के जवान उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
छुट्टियों की परंपरा:
ऐसा माना जाता है कि उनकी आत्मा आज भी सेना के साथ रहती है और सीमाओं की रक्षा करती है और इसी विश्वास के कारण वे हर साल २१ सितंबर से १५ अक्टूबर तक ‘विदा’ मनाते हैं। इस दौरान उनकी वर्दी, जूते और अन्य आवश्यक सामान पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनके पैतृक गाँव कपूरथला-पंजाब भेजा जाता है।
भारतीय सेना ने इस परंपरा को अत्यंत निष्ठा और अनुशासन के साथ बनाए रखा है। भले ही १९६८ में सिक्किम में ड्यूटी के दौरान २२ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी ऐसा माना जाता है कि वह नाथू ला सीमा की रक्षा करते हैं। पूज्य बाबा आज भी भारतीय और चीनी दोनों सेनाओं के लिए पूजनीय हैं। दोनों देशों के बीच ध्वज-स्थापना के दौरान, चीनी सेना उनके अदम्य साहस और प्रतिबद्धता के सम्मान में उनके लिए एक कुर्सी रखती है।
संत कैप्टन हरभजन सिंह के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य:
सीमा रक्षक:
ऐसा कहा जाता है कि बाबा कम से कम तीन दिन पहले सैनिकों को एक स्वतंत्र हमले के बारे में चेतावनी देते थे और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अपनी निगरानी रखते थे।
दोनों सेनाओं द्वारा सम्मानित: भारत और चीन के बीच प्रत्येक ध्वज-स्थापना के दौरान, चीनी सेना उनके लिए एक कुर्सी रखती थी।
बाबा मंदिर:
उनके सम्मान में निर्मित इस मंदिर में तीन कमरे हैं- उनका कार्यालय, भण्डारण और बैठक कमरा।

दैनिक अनुष्ठान:
हर सुबह उनके कमरे की सफाई की जाती है और सैनिकों को अक्सर उनका चादर बिछा हुआ या उनके जूते कीचड़ से सने हुए मिलते हैं, मानो वह अभी गश्त से लौटे हों।
उपस्थिति का एहसास:
सैनिक अक्सर उनकी उपस्थिति के संकेतों को नोटिस करते हैं और उनके शिविरों और दुकानों का दौरा करते हैं।
निरंतर सेवा:
बाबा हरभजन सिंह को हर महीने एक मेजर का वेतन प्राप्त करने का सम्मान दिया जाता है और उन्हें दो महीने की वार्षिक छुट्टी दी जाती है।
वार्षिक यात्रा:
हर साल ११ सितंबर को उनका सामान उनके गृहनगर भेज दिया जाता है। सिलीगुड़ी के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन से ट्रेन द्वारा उनके लिए एक बर्थ आरक्षित की जाती है, जो पूरी यात्रा के लिए खाली रहती है और उनके साथ सैनिकों की एक टीम होती है। सेना अलर्ट: उनकी वार्षिक छुट्टी के दौरान भी, सेना पूरी तरह से सतर्क रहती है और उनके प्रति अनुशासन और सम्मान बनाए रखती है जैसे कि वह जीवित हों।