काठमांडू: प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की चीन यात्रा कूटनीतिक विवादों में घिर गई है। विवाद का कारण यह है कि वे जापान के विरुद्ध चीन द्वारा आयोजित द्वितीय विश्व युद्ध विजय दिवस सैन्य परेड में शामिल होने जा रहे हैं। चूँकि जापान नेपाल का प्रमुख दाता राष्ट्र है, इसलिए विशेषज्ञों ने इसे नेपाल की विदेश नीति में असंतुलन करार दिया है।
राष्ट्रपति पौडेल ने अस्वीकार किया निमंत्रण:
चीन ने शुरुआत में राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को ३ सितम्बर को बीजिंग में होने वाली इस सैन्य परेड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था। परंतु विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति के सलाहकारों ने इसे अनुचित बताते हुए भाग न लेने की राय दी। इसके बाद चीन ने प्रधानमंत्री ओली को प्रस्ताव भेजा और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। अब वे ३१ अगस्त को तियानजिन में होने वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में शामिल होकर १८ भाद्र को बीजिंग की परेड में भाग लेंगे।
जापान-नेपाल संबंध पर असर की आशंका:
पूर्व राजदूत राजेश्वर आचार्य ने कहा कि यदि ओली केवल एससीओ सम्मेलन तक ही सीमित रहते तो यह देशहित में होता। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा के विदेश मामलों के सलाहकार अरुणकुमार सुवेदी ने कहा, “किसी एक देश के खिलाफ युद्ध स्मृति समारोह में शामिल होना नेपाल के लिए उचित नहीं है।”
कांग्रेस नेता भी होंगे साथ:
प्रधानमंत्री ओली के साथ कांग्रेस उपसभापति पूर्णबहादुर खड़का और पर्यटन मंत्री बद्री पांडे भी बीजिंग रवाना होंगे। कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस तरह परेड में कांग्रेस की उपस्थिति गलत संदेश देगी। उधर, विदेश मंत्री डॉ. आरजु राणा देउबा इस यात्रा में शामिल नहीं होंगी।
चीन और जापान के बीच सन्देश:
सूत्रों के अनुसार जापान ने अपने दूतावासों के माध्यम से एशियाई और यूरोपीय देशों से अनुरोध किया है कि वे इस सैन्य परेड में भाग न लें। हालांकि नेपाल सरकार को ऐसा कोई औपचारिक अनुरोध मिला है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “प्रधानमंत्री की यह यात्रा जापान के विरुद्ध नहीं है, बल्कि केवल ८० वर्ष पुराने इतिहास की स्मृति है। नेपाल जापान के साथ अपने संबंधों को अत्यधिक महत्व देता है।”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
चीनी मीडिया के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान चीन ने जापानी सैन्यवाद के खिलाफ १४ वर्षों तक संघर्ष किया था, जिसमें करोड़ों लोगों की जान गई थी। चीन इस परेड को उसी ऐतिहासिक स्मृति के रूप में मना रहा है, न कि वर्तमान जापान की नीतियों या सरकार के खिलाफ।
सारांश यह है कि प्रधानमंत्री ओली की बीजिंग यात्रा से जहाँ नेपाल-चीन संबंध और प्रगाढ़ हो सकते हैं, वहीं जापान जैसे बड़े सहयोगी देश के साथ रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।