अमेरिकी दबदबे के खिलाफ ब्राजील का साहसिक प्रतिरोध

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जोसेफ स्टिग्लिट्ज़

आशा है कि विश्व के सभी छोटे-बड़े देश अमेरिका की धमकियों के विरुद्ध ब्राजील जैसा साहस दिखाएँगे।
कई दशकों तक अमेरिका लोकतंत्र, कानून का राज और मानव अधिकारों का समर्थक कहलाता था। लेकिन उसी अवधि में उसके कथन और व्यवहार में गहरा विरोधाभास देखा गया। शीतयुद्ध के समय, साम्यवाद के नाम पर ग्रीस, ईरान, चिली जैसे देशों की लोकतांत्रिक सरकारें गिराई गईं। अमेरिका के भीतर भी दासप्रथा खत्म होने के सौ साल बाद तक अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। हाल के वर्षों में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने नस्लीय भेदभाव को खत्म करने के प्रयासों को पीछे धकेलने वाले निर्णय लिए हैं।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी रिपब्लिकन पार्टी ने इस पतनशील स्थिति को और गहराया। ट्रम्प का पहला कार्यकाल कानून के शासन के प्रति नफरत की चरम अभिव्यक्ति था। उन्होंने शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण जैसी लोकतंत्र की मूलभूत परंपराओं को पलटने का प्रयास किया। २०२० के चुनाव में बाइडेन को ७० लाख से अधिक वोट मिलने और अदालतों द्वारा चुनाव में गड़बड़ी न होने की पुष्टि के बावजूद, ट्रम्प आज भी यह दावा करते हैं कि उन्होंने ही चुनाव जीता था।
चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग ७०% रिपब्लिकन समर्थकों को अब भी विश्वास है कि चुनाव में धांधली हुई थी। अमेरिका में बड़ी संख्या में लोग षड्यंत्र सिद्धांतों और गलत सूचनाओं में फंसे हुए हैं। ट्रम्प समर्थकों के लिए अब लोकतंत्र से ज़्यादा “अमेरिकन जीवनशैली” की रक्षा अर्थात श्वेत पुरुषों का वर्चस्व, महत्वपूर्ण बन चुका है।
कभी अमेरिका दूसरे देशों के लिए आदर्श माना जाता था, पर अब ट्रम्प जैसे लोकप्रियतावादी नेताओं की नकल करने वाले दुनिया भर में देखे जा सकते हैं। ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जाइर बोल्सोनारो इसका प्रमुख उदाहरण हैं। उन्होंने अमेरिका के कैपिटल पर ६ जनवरी २०२१ को हुए हमले जैसी ही घटना ८ जनवरी २०२३ को ब्राजीलिया में दोहराने की कोशिश की। लेकिन ब्राजील की संस्थाओं ने दृढ़ता दिखाई और अब बोल्सोनारो को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
इसके उलट, ट्रम्प अगर दोबारा राष्ट्रपति बने, तो अमेरिका और पीछे जाएगा। उन्होंने ब्राजील को धमकी दी कि अगर बोल्सोनारो के खिलाफ मुकदमा नहीं रोका गया, तो अमेरिका ५०% तक टैरिफ बढ़ा देगा। यह धमकी अमेरिकी संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। अमेरिकी कांग्रेस ने कभी भी टैरिफ को दूसरे देशों पर राजनीतिक दबाव डालने का हथियार बनाने की अनुमति नहीं दी है।
ब्राजील का रुख अमेरिका से बिल्कुल अलग है। जहाँ अमेरिका में ६ जनवरी के विद्रोहियों को सजा देने की प्रक्रिया धीमी रही, वहीं ट्रम्प ने दोबारा राष्ट्रपति बनते ही सभी दोषियों को क्षमा कर दिया। लेकिन राष्ट्रपति लुला दा सिल्वा ने ट्रम्प की धमकी को “अस्वीकार्य ब्लैकमेल” कहकर खारिज कर दिया और दोटूक कहा कि कोई भी विदेशी हमें आदेश नहीं दे सकता।
लुला ने सिर्फ व्यापार क्षेत्र में ही नहीं, अमेरिकी तकनीकी कंपनियों को नियंत्रित करने के अधिकार में भी ब्राजील की संप्रभुता की रक्षा की। अमेरिका की टेक कंपनियाँ अपने मुनाफे के लिए दुनियाभर की सरकारों पर दबाव बनाती हैं, जिससे गलत और भ्रामक सूचनाएँ फैलती हैं। लेकिन ब्राजील के नागरिकों ने इस हस्तक्षेप का विरोध किया और लुला को समर्थन दिया।
लुला का यह रुख सिर्फ चुनावी लाभ के लिए नहीं था, बल्कि यह उनके इस दृढ़ विश्वास से प्रेरित था कि ब्राजील को अपनी नीतियाँ स्वतंत्र रूप से तय करने का अधिकार है। उनके नेतृत्व में ब्राजील ने एक बार फिर लोकतंत्र और कानून के शासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। जबकि अमेरिका खुद अपनी लोकतांत्रिक नींव से दूर होता जा रहा है।
आशा है, कि अमेरिका की धमकियों के सामने बाकी देश भी ब्राजील जैसा साहस दिखाएँगे। ट्रम्प ने अमेरिका के भीतर लोकतंत्र को जो नुकसान पहुँचाया है, उसे दुनिया में दोहराने से रोकना ही होगा।
(जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ नोबेल विजेता अर्थशास्त्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं। यह लेख प्रोजेक्ट सिन्डिकेट से लिया गया है।)

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