बीरगंज(नेपाल): भारत-नेपाल सीमा से सटी एक अहम परियोजना इंडो-नेपाल बॉर्डर सड़क का निर्माण अपने अंतिम चरण में है। यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सड़क दिसंबर २०२५ तक पूरी तरह बनकर तैयार हो जाएगी. सड़क का ८० प्रतिशत यानी ४५० किलोमीटर से अधिक हिस्सा बन चुका है। यह परियोजना न केवल सीमा सुरक्षा के लिहाज से अहम है, बल्कि सीमावर्ती जिलों के विकास में भी एक बड़ा कदम साबित होगी।
इस केंद्रीय परियोजना की कुल निर्माण लागत २४८६.२२ करोड़ रुपए है, जबकि भूमि अधिग्रहण और पुल-पुलियों के निर्माण पर राज्य सरकार ने ३,३०० करोड़ रुपए खर्च किए हैं। पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन ने बताया कि पश्चिमी चंपारण के मदनपुर से लेकर किशनगंज के गलगलिया होते हुए यह सड़क सिलिगुड़ी तक जाएगी। इसके दायरे में बिहार के सात सीमावर्ती जिले- पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज शामिल हैं।
एसएसबी की चौकियों तक त्वरित पहुंच:
इस परियोजना की नींव वर्ष २०१० में रखी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य सशस्त्र सीमा बल की चौकियों को तेज, सुरक्षित और हर मौसम में सुगम सड़क मार्ग से जोड़ना है। भारत-नेपाल सीमा की कुल ७२९ किलोमीटर की सीमा में से ५५४ किलोमीटर बिहार की सीमा है। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश और बिहार को मिलाकर यह सड़क परियोजना कुल १,३७२ किलोमीटर लंबी है।
तस्करी और घुसपैठ पर नियंत्रण
यह सड़क सिर्फ सेना या सुरक्षा एजेंसियों के लिए ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती इलाकों के आम नागरिकों के लिए भी वरदान साबित होगी। मंत्री नितिन नवीन ने बताया कि सड़क के निर्माण से सीमा पर निगरानी तेज होगी, जिससे तस्करी, अवैध व्यापार और घुसपैठ जैसी गतिविधियों पर नियंत्रण लगाया जा सकेगा।
व्यापार और सुविधा को मिलेगा नया रास्ता:
इस सड़क के बन जाने से सीमावर्ती जिलों के लाखों लोगों को व्यापार, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बेहतर कनेक्टिविटी मिलेगी। यह सड़क न सिर्फ सुरक्षा का आधार बनेगी, बल्कि बिहार के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी अहम भूमिका निभाएगी।