विनोदकुमार विमल
जेन ज़ी आज की युवा पीढ़ी है। यह २८ साल से कम उम्र का समूह है। १९९७ से २०१२ के बीच पैदा हुई पीढ़ी को जेन ज़ी कहा जाता है। यह पीढ़ी कंप्यूटर और इंटरनेट के युग की पीढ़ी है। यह वह पीढ़ी है जो मोबाइल फ़ोन के साथ बड़ी हुई है। इसने दुनिया और ब्रह्मांड को इंटरनेट के ज़रिए समझा है। भाद्रपद माह की २३ और २४ गते ( ८ और ९ सितम्बर ) को देश में इस पीढ़ी ने जो आंदोलन छेड़ा, उसने न सिर्फ़ राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी, बल्कि सत्ता भी बदल दी, वो भी लगभग एक ही दिन में। इसने देश में दशकों से जमी राजनीतिक व्यवस्था को उलट-पुलट कर दिया। इस पीढ़ी ने नेपाली समाज में असंतोष और निराशा के लंबे समय से चले आ रहे बांध को तोड़ दिया है। भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और आर्थिक असमानता के खिलाफ इसी पीढ़ी के उभार के कारण दशकों से सत्ता पर काबिज रही पीढ़ी घुटने टेकने पर मजबूर हो गई। यह पीढ़ी पूरे विश्व में फैली हुई है और इसने न केवल नेपाल में बल्कि अन्यत्र भी हलचल मचा दी हैl
बांग्लादेश में कोटा व्यवस्था के खिलाफ जुलाई क्रांति वहाँ की जेन ज़ी पीढ़ी ने की थी। केन्या में, जेन ज़ी ने वित्त विधेयक के खिलाफ विद्रोह किया। थाईलैंड में, यही वह पीढ़ी है जिसने लोकतंत्र की मांग करते हुए राजशाही और सेना के खिलाफ आवाज उठाई थी। चाहे हांगकांग में लोकतंत्र के लिए संघर्ष हो या ईरान में महिलाओं की आज़ादी की माँग, यही पीढ़ी इसकी माँग कर रही है। इंडोनेशिया में ‘नेपोकिड्स’ अभियान ने नेताओं और सांसदों के बच्चों की विलासितापूर्ण जीवनशैली को हिलाकर रख दिया है। फिलीपींस में इसी तरह का आंदोलन होने के बाद, नेपाली जेन-ज़ी उत्साहपूर्वक टिकटॉक सहित सोशल मीडिया पर वही अभियान चला रहे थे, जिसकी जानकारी नेपाली राजनीति में जड़ें जमा रही पीढ़ी को नहीं थी । लोकतांत्रिक व्यवस्था में समानता होनी चाहिए। लेकिन सत्ता से चिपकी जनता के मुद्दों को दबाने वाली पीढ़ी को यह पसंद नहीं आया। पुरानी पीढ़ी ने लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ी थी। लेकिन सत्ता में रहते हुए वे कुशासन करते रहे थे। जेन-ज़ी यही बदलना चाहते थे। जिनके बारे में कहा जाता था कि उन्हें राजनीति से कोई सरोकार नहीं, उन्होंने सरकार बदल दी।
नेपाल में जेन-ज़ी के नेतृत्व में अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शनों की लहर ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता, भाई-भतीजावाद और पक्षपात के खिलाफ गुस्से से शुरू हुआ यह आंदोलन, सोशल मीडिया पर अचानक लगे प्रतिबंध से और भड़क गया। नेपाल में ४ सितम्बर को सोशल मीडिया बैन के बाद से ही आंदोलनों की नींब पड़ चुकी थी ८ सितम्बर आते-आते आंदोलनकारियों ने सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध के साथ- साथ सरकार को भ्रष्टाचार मुद्दे पर भी घेरा और जबर्दस्त प्रदर्शन किए। दुनिया ने पहली बार नेपाल में सोशल मीडिया का ऐसा प्रचंड रूप देखा जिसने समूचे शासन तन्त्र को ध्वस्त कर डाला। अनियन्त्रित सोशल मीडिया की यह प्रचण्ड शक्ति चप्पे–चप्पे में मौजूदगी दोधारी तलवार का भी काम कर सकती है। देश की यह घटना हमें यह सतर्क कराती है कि डिजिटल युग में शक्ति अब सिर्फ हथियारों में नहीं, बल्कि स्क्रीन्स में भी है। यह इतिहास का पहला ऐसा विद्रोह है जो सीधे तौर पर सोशल मीडिया प्रतिबंध से शुरू हुआ और सरकार को गिरने तक पहुंचा दिया। इस आंदोलन में युवाओं और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प भी हुई और ७३ लोग मारे गए। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा था।
आंदोलनकारियों के बीच गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया मंच पर प्रतिबंध और सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर ही नहीं था, बल्कि इस आंदोलन में जिसने आग में घी डालने का कार्य किया वह थी ` नेपोकिड्स` की आलीशान जिंदगी। एक तरफ जहाँ देश गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई की मार झेल रहा है तो वहीं नेताओं के बच्चे विदेशों में आलीशान जीवन जी रहे हैंl नेपाल के युवाओं ने सोशल मीडिया पर पॉलिसीशंस नेपोबाब्ये नेपाल और नेपोबेबीज जैसे हैशटैग चलाकर उन्हें बताया कि कैसे देश के राजनेताओं के बच्चे उनके टैक्स के पैसों से अपना आलीशान जीवन शैली में लगा रहे हैं। इनके बच्चे विदेशों में घूम रहे हैं, महंगे बैग, लग्जरी गाड़ियाँ, महंगी घड़ी खरीद रहे हैं।
नेपोटिज्म का अर्थ होता है, भाई-भतिजावाद वाली प्रथा, जिसमें मशहूर हस्तियों के बच्चे को उनके पारिवारिक संबंधों के कारण आसानी से अवसर मिल जाते हैंl मूलतः नेपाल में ‘नेपोबेबीज` शब्द से नेताओं के परिवार का विरोध किया जा रहा है, जो आम लोगों के पैसों को अपनी विलासितापूर्ण जीवन शैली जीने में लगा रहे हैं l सोशल मीडिया पर ऐसे कई पोस्ट शेयर किए हैं, जिसमें कई राजनेताओं के बच्चों को आलीशान जीवन जीते हुए दिखाया गया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा की बहु शिवाना श्रेष्ठ का वीडियो पोस्ट किया गया। नेपाल से प्रकाशित विभिन्न समाचार पत्रों के अनुसार उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर आलीशान घर और फैशन से जुड़े फोटो वीडियो पोस्ट किए थे। हालांकि अब उनका इंस्टाग्राम अकाउंट निस्क्रिय हो चुका है। प्रदर्शनकारियों ने शिवाना और उनके पति जयवीर सिंह देउवा को निशाना बनाते हुए उनका आलीशान जीवन को शेयर करते हुए विरोध किया l इसी तरह जनता के बीच कई और नेपोकिड्स को लेकर विरोध हुआ।
जेन-ज़ी प्रदर्शनकारियों की तरफ से जिन नेपोकिड्स को निशाना बनाया गया, उनमें सबसे प्रमुख नाम शृंखला खतिबड़ा का है l वह पूर्व स्वास्थ्य मंत्री विरोध खतिबड़ा की बेटी और पूर्व मिस नेपाल रह चुकी हैं। सोशल मीडिया पर इनकी विदेश यात्राओं और लग्जरी लाइफस्टाइल से जुड़े फोटो साझा किए गएl इसके साथ ही महंगे कपड़े और डिजाइनर हैंडबैग दिखाए गए हैंl शृंखला के इंस्टाग्राम से पता चला है कि उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है और उनकी शादी संभव सिरोहिया से हुई है, जो कान्तिपुर मीडिया ग्रुप के प्रबंध निदेशक हैंl सोशल मीडिया पर शेयर की गई तस्वीरों में वह स्वीट्जरलैंड, लन्दन, कैलिफोर्निया, कोलोराडो जैसी जगहों पर छुट्टियाँ मनाती हुई नजर आ रही हैंl अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के साथ-साथ वह लग्जरी ब्रांड के साथ फोटोशूट कराती भी दिख रही हैंl
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ पत्रकारों द्वारा विरोध प्रदर्शन:
नेपाल पत्रकार महासंघ और नेपाल प्रेस यूनियन के नेतृत्व में पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ राजधानी में भाद्रपद २२ को बैनर के साथ प्रदर्शन किया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने ‘नेटवर्क बंद, आवाज बंद’, ‘लोगों का मुंह बंद नहीं किया जा सकता’, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा अधिकार है’, और ‘सरकार ने हमारे पेट पर लात मारी, हमारी दाल-चावल छीन ली’ जैसे नारे लगाए और सरकार के फैसले को अलोकतांत्रिक बताया तथा इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। पत्रकार नेताओं ने सोशल प्लेटफॉर्म बंद करके नागरिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन करने के लिए सरकार की आलोचना की थी और उस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बंद होने की पृष्ठभूमि और इससे उत्पन्न प्रतिक्रियाएं:
नेपाल सरकार के इस निर्णय से पूरे देश में प्रतिक्रियाओं की लहर दौड़ गई, जिसमें विभिन्न व्यावसायिक एवं अधिकार संगठनों, अंतर्राष्ट्रीय अधिकार संगठनों और आम उपयोगकर्ताओं ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ नेताओं के विचारों के अनुरूप सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था । इससे पहले विपक्षी पार्टी के नेताओं ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा था कि इससे ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगेगा’। नेपाल सरकार द्वारा गैर-सूचीबद्ध सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को बंद करने के निर्णय के बाद, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार के रूप में व्याख्यायित किया। अल-जजीरा, एपी, रॉयटर्स और डीडब्ल्यू सहित मीडिया आउटलेट्स ने चिंता व्यक्त की कि सरकार के इस कदम से लोगों के मौलिक अधिकार और सूचना तक पहुंच प्रभावित होगी।
सोशल मीडिया के कारण उभरे जेन-ज़ी:
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध दर्शाता है कि देश में कितनी रोजगारी की कमी है और अवसरों की अनुपलब्धता हैl देश के युवा इस बात से परेशान है कि पिछले कई वर्षों से ७० साल से ऊपर के ऐसे नेता सत्ता में आ रहे हैं, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैंl
नेपाल सन् २००८ में गणतन्त्र बना था, लेकिन तब से लेकर आज तक एक ही जैसे नेता सत्ता में आते–जाते रहे हैंl जेन-ज़ी आंदोलन पूर्व सरकार ने गलत सूचना और जवाबदेही सुनिश्चित करने के नाम पर २६ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे १.४३ करोड़ यूजर्स प्रभावित हुए। लेकिन यह प्रतिबंध युवाओं, खासकर जेन-जी के लिए भ्रष्टाचार, भाई- भतिजावाद और बेरोजगारी के खिलाफ बगावत का प्रतीक बन गया। यह आंदोलन सोशल मीडिया की शक्ति का सबसे ताजा प्रमाण हैl इसे ‘इतिहास का पहला सोशल मीडिया विद्रोह के रूप में देखा जा रहा है l दिलचस्प बात यह है कि प्रतिबंध के बावजूद, प्रदर्शनकारी ऑफलाइन संगठित हुए, लेकिन सोशल मीडिया की अनुपस्थिति ने उनके गुस्से को और भड़कायाl सोशल मीडिया की अत्यंत तीव्र गति और उसकी जबर्दस्त व्यापकता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। वास्तव में, आज जिसके जेब में मोबाइल फोन है वही नागरिक पत्रकार है। सोशल मीडिया की एक बड़ी ताकत यह है कि जहाँ प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी नहीं पहुँच पाता, वहाँ वह मिनटों में सूचना फैला देता हैl
कई राजनीतिक नेताओं और उनके आवासों पर हमला किया गया। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा और उनकी पत्नी, विदेश मंत्री आरज़ू राणा देउवा, घायल हो गए जब उनके घर में आग लगा दी गई। प्रदर्शनकारियों ने उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एवं उप प्रधानमंत्री प्रकाश मान सिंह के घर और वाहन में आग लगा दी गई, इसके बाद काठमांडू के भंगाल में पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के घर में आग लगा दी गई। पूर्व प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल के आवास में भी आग लगा दी गई, जिसमें उनकी पत्नी राज्यलक्ष्मी चित्रकार गंभीर रूप से घायल हो गईं। काठमांडू के नैकाप में गृहमंत्री रमेश लेखक के आवास में भी आग लगा दी गई। पूर्व प्रधानमंत्री डा. बाबुराम भट्टराई और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल के घर में भी आग लगा दी गई। इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री आवास, सिंहदरबार, संसद भवन आदि में भी आग लगा दी गई।
रूपन्देही जिले में स्थानीय राजनेताओं बाल कृष्ण खांड, भोज प्रसाद श्रेष्ठ और कई महापौरों के घर जला दिए गए। चितवन जिले में पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के घर में आग लगा दी गई। ललितपुर में उनकी बेटी गंगा दाहाल के घर में भी आग लगा दी गई। अगले दिन घर में एक व्यक्ति मृत पाया गया । हेटौड़ा में, कई सरकारी कार्यालयों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। कर्णाली प्रांत में, संसद भवन और मुख्यमंत्री यम लाल कंडेल के आवास को आग लगा दी गई। कोशी प्रांत की राजधानी विराटनगर में, मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों के आवास को भी आग लगा दी गई।
राजनीतिक अस्थिरता और नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप:
गणतन्त्र के बाद देश की राजनीति बहुत अस्थिर रही है, जहाँ सत्ता कभी माओवादी नेता पुष्प कमल दाहाल(प्रचण्ड) के पास, कभी डा. बाबुराम भट्टराई के पास, कभी कम्युनिस्ट नेता केपी शर्मा ओली के पास, कभी कांग्रेस नेता शेर बहादुर देउवा के पास तो कभी माधव कुमार नेपाल और झलनाथ खनाल के पास जाती रही हैl ये नेता आपस में गठ बंधन बनाते-बिगाड़ते रहते हैं। कुछ महीने पहले मार्च में भी देश में विरोध प्रदर्शन हुए थे, लेकिन तब कई लोग राजशाही की वापसी की मांग कर रहे थेl उनका मानना था कि नेपाल को गणराज्य बनाना एक असफल प्रयोग हो रहा हैl देश के लगभग सभी नेताओं पर किसी न किसी तरह के भ्रष्टाचार के आरोप हैंl देश में सन् २००६ से एक परंपरा बन गई है कि कैबिनेट की ओर से अगर कोई फैसला लिया गया हो, तो नेताओं को उसके लिए जांच से छूट मिल जाती हैl पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की अवहेलना कर चाय बगान को व्यावसायिक जमीन में बदलने का आरोप हैl तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों माधव कुमार नेपाल, डा. बाबुराम भट्टराई और खिलराज रेग्मी पर सरकारी जमीन को निजी लोगों को देने के घोटालों में भूमिका निभाने का आरोप हैl वहीं, तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके पुष्प कमल दाहाल (प्रचण्ड) पर आरोप है कि उन्होंने सन् २००६ के बाद शांति प्रक्रिया के दौरान माओवादियों के लिए रखे गए पैसों में घोटाला किया और उससे अरबों की सम्पत्ती बना लीl शेर बहादुर देउवा पर विमान खरीद में रिश्वत लेने का आरोप है। उनकी पत्नी पूर्व विदेशमंत्री आरजु देउवा पर आरोप है कि उन्होंने नेपाली नागरिकों के दस्तावेजों में भूटानी नागरिक दिखाकर शरणार्थी के रूप में अमेरिका भेजा।
जेन ज़ी पीढ़ी को समझ आ गया है कि राजनीति सिर्फ भ्रष्ट नेताओं का खेल नहीं, बल्कि भविष्य गढ़ने की प्रक्रिया हैl वे सवाल पूछने लगे हैं, “हमारे नेता क्यों चुने जाते है? मंत्री बनने की प्रक्रिया क्या है? युवाओं को अवसर क्यों नहीं मिलता ? “ ऐसे सवालों ने उन्हें सैद्धान्तिक और व्यावहारिक समझ विकसित की है।
८ सितम्बर के घटनाक्रम ने युवाओं को यह समझा दिया है कि चुनाव में हर वोट मायने रखता है और यह देश का भविष्य बदल सकता हैl इस जागृति ने देशभक्ति के एक नये रूप को जन्म दिया हैl जो युवा पहले सोशल मीडिया पर वायरल डान्स और मीम्स बनाते थे, वे अब देश की नीतियों, नेतृत्व और चुनावी प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे हैंl वे मंत्रियों की जवाबदेही पर सवाल उठा रहे हैंl
विदेश में रहने वाले युवा भी अब इस बात से वाकिफ हो गए हैं कि उन्हें वोट देने के लिए नेपाल लौटना चाहिएl जेन-ज़ी अब यह नहीं सोचती कि १२वीं पास करने के बाद उन्हें विदेश जाना चाहिए, जबकि यहाँ रहने वाले ऐसा सोचते हैंl इसके बावजूद, उनमें यह भावना विकसित हो गई है कि “अगर हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?“ यह भावना न केवल जेन ज़ी पीढ़ी को, बल्कि सभी नेपालियों को देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी की याद दिला रही है। दूसरी ओर, यह पीढ़ी नेतृत्व में एक नये चेहरे की तलाश में है। वे पुरानी `बदलाव वाली ` व्यवस्था को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। वे पारदर्शी, जवाबदेह और सक्षम नेतृत्व की तलाश में हैं। इस मांग ने राजनीतिक दलों पर अपने ढांचे और उमीदवार चयन प्रक्रिया में सुधार का दवाब बनाया है। हालांकि, जेन ज़ी पीढ़ी नेपाली राजनीति में नई उम्मीद लेकर आई है। उनकी सतर्कता ने राजनीति को एक ` गंदे खेल` से बदलकर जनशक्ति के मंच में बदल दिया है।
एक-एक वोट की कीमत समझते हुए, उन्होंने देश का भविष्य अपने हाथों में ले लिया हैl यह आंदोलन सिर्फ सड़कों या सोशल मीडिया तक सीमित नहीं हैl यह हर घर, हर दिल तक पहुँच चुका हैl
निष्कर्ष:
नेपाल की जेन-ज़ी उदासीन या विरक्त नहीं है। वे जागरूक हैं । हम जो देख रहे हैं वह सिर्फ़ प्रतिबंध पर आक्रोश या भ्रष्टाचार से हताशा नहीं है; यह देशभक्ति के एक नए रूप का जन्म है, जो समानता, अधिकार, सम्मान और भागीदारी की माँग करता है। जब युवा आंसू गैस, कर्फ्यू और गोलियों का सामना करने की हिम्मत करते हैं, तो वे ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि उन्हें परवाह नहीं होती। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें बहुत ज़्यादा परवाह होती है। वे अपने देश से बेहद प्यार करते हैं और उसे बेहतर बनाने के लिए कमर कस लेते हैं । और शायद इस पीढ़ी को उनके द्वारा तोड़े गए विनाश के लिए नहीं, बल्कि उनके द्वारा बनाए गए निर्माण के लिए याद किया जाएगा- “एक ज़्यादा न्यायपूर्ण, ज़्यादा खुला नेपाल।“ जेन-ज़ी विरोध प्रदर्शन पर सरकार की घातक प्रतिक्रिया से नाराज़ भीड़ द्वारा देश भर में जलाई गई सैकड़ों इमारतों की राख अब जमने लगी है।
८ सितंबर के विरोध प्रदर्शन के दो शुरुआती कारण सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और राजनीतिक नेताओं के बच्चों के दिखावे से उपजी हताशा अब ऐसे एजेंडे में बदल गए हैं जिन्हें कभी वास्तविक रूप से असंभव माना जाता था कि`नेपाली राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव और स्वच्छ एवं प्रभावी शासन व्यवस्था है।“