भारत-चीन संबंधों में व्यावहारिकता और सहयोग पर जोर: कोलकाता में विशेषज्ञों की साझा मंथन

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कोलकाता: महानगर में टैगोर पीस स्टडीज (टीआईपीएस) और चीनी वाणिज्य दूतावास की साझेदारी में आयोजित विशेष सत्र “बदलती भू-राजनीति: भारत-चीन संबंधों की नई रूपरेखा” में दोनों देशों के शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने साझा रूप से इस बात पर सहमति जताई कि भविष्य का रास्ता सहयोग और व्यावहारिकता से ही तय होगा।
कार्यक्रम में टीआईपीएस के संस्थापक अध्यक्ष सीताराम शर्मा, कोलकाता स्थित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के कार्यवाहक महावाणिज्यदूत किन योंग, फुदान विश्वविद्यालय के प्रो. झांग जियाडोंग, जादवपुर विश्वविद्यालय की प्रो. इशानी नास्कर, सिचुआन विश्वविद्यालय के प्रो. हुआंग युनसॉन्ग, एडामस विश्वविद्यालय के प्रो. त्रिदिब चक्रवर्ती और उपकुलपति व टीआईपीएस चेयरमैन सुरंजन दास सहित कई विशेषज्ञ शामिल हुए।
सीताराम शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शंघाई शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी भारत की स्पष्ट इच्छा को दर्शाती है कि विवादों के बावजूद साझा दीर्घकालिक हितों पर ध्यान दिया जाए।
महावाणिज्यदूत किन योंग ने बताया कि इस वर्ष के पहले सात महीनों में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार ८८ अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका है और परस्पर लाभकारी सहयोग ही एशिया की शांति और समृद्धि की कुंजी है।
प्रो. इशानी नास्कर ने साझा भूगोल और औपनिवेशिक विरासत पर जोर देते हुए कहा कि व्यापार को मज़बूत करना सबसे महत्वपूर्ण एजेंडा है। प्रो. त्रिदिब चक्रवर्ती ने संस्थागत तंत्र के माध्यम से यथार्थवादी रणनीति पर काम करने की आवश्यकता बताई।
जूम के माध्यम से जुड़े चीनी शिक्षाविदों ने भारत-चीन मित्रता को एशिया के विकास और विश्व-शांति के लिए आवश्यक बताया और सामाजिक-आर्थिक सहयोग बढ़ाने की अपील की। कार्यक्रम का समापन आर्थिक अवसरों को व्यापक बनाने और जन-जन के बीच संवाद को प्रोत्साहित करने पर विचार-विमर्श के साथ हुआ।

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