भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र बना मानव तस्करी का मुख्य अड्डा

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सिलीगुड़ी: भारत-नेपाल सीमा इन दिनों मानव तस्करी का मुख्य केंद्र बन गई है। पिछले कुछ दिनों में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता के चलते १०४ युवतियों को तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया गया है। ताज़ा मामला शुक्रवार शाम का है, जब सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की ४१वीं वाहिनी द्वारा भारत-नेपाल सीमा पर मानव तस्करी की एक बड़ी कोशिश को नाकाम कर दिया गया। शुक्रवार शाम एसएसबी के जवानों ने पानीटंकी में कार्रवाई करते हुए सात नेपाली युवतियों को तस्करों के चंगुल से मुक्त कराया। गिरफ्तार युवतियों में एक नाबालिग भी शामिल है।
एसएसबी ने इस मामले में दो तस्करों को हिरासत में लिया है। आरोपियों की पहचान जापान गुरुंग (नेपाल निवासी) और दीपेश गुरुंग (नक्सलबाड़ी) के रूप में हुई है। सूत्रों के अनुसार, दोनों तस्कर इन युवतियों का पासपोर्ट बनवाकर उन्हें हांगकांग भेजने की तैयारी में थे।
जानकारी के अनुसार, एसएसबी की गिरफ़्त में महिलाएँ: आरोपी तस्कर दीपेश गुरुंग एक टैक्सी चालक है। उसका मुख्य काम सीमा से सभी लड़कियों को इकट्ठा करके सिलीगुड़ी ले जाना है, जहाँ यह प्रक्रिया आगे बढ़ती है। वह पिछले २-३ सालों से यह काम कर रहा है। दीपेश और जापान (जापान) एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। बताया जा रहा है कि छुड़ाई गई महिलाओं में एक युवती नाबालिग बताई जा रही है। जापान गुरुंग पहले भी कई बार कई नेपाली लड़कियों को दिल्ली, असम और देश के अन्य हिस्सों में ले जा चुका है।
सिलीगुड़ी फ्रंटियर के एसएसबी डीआईजी एक सी सिंह ने कहा कि यह एक बड़ा गिरोह हो सकता है जिसमें तस्कर नौकरी के नाम पर नेपाली लड़कियों की तस्करी करते हैं। विदेश में आकर्षक नौकरी दिलाने का वादा करके उन्हें अपने जाल में फँसाते हैं। तस्कर लड़कियों को भारत लाते हैं और फर्जी दस्तावेजों के ज़रिए उनके आधार, पैन कार्ड और पासपोर्ट बनवा लेते हैं। सभी ज़रूरी दस्तावेज़ तैयार करने के बाद लड़कियों को अलग-अलग देशों में भेज दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के लिए तस्कर प्रत्येक लड़की से लगभग ३ लाख रुपये लेते हैं।

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