काठमांड: नेकपा एमाले के प्रस्तावित विधान मसौदे में पार्टी के अंदर शक्ति का केंद्रीकरण अध्यक्ष के हाथों में करने और सामूहिक निर्णय लेने की प्रणाली को कमजोर करने के प्रावधानों ने पार्टी नेताओं के बीच विवाद को जन्म दिया है। मसौदे में केंद्रीय सचिवालय की संरचना को हटाकर स्थायी समिति बनाने का प्रस्ताव किया गया है, जिसे लेकर पोलिटब्यूरो की बैठक में तीखी चर्चा हो रही है।
प्रमुख बिंदु: १. केंद्रीय सचिवालय की जगह स्थायी समिति:
वर्तमान में केंद्रीय सचिवालय की व्यवस्था को हटाकर १५ सदस्यीय स्थायी समिति बनाने का प्रस्ताव है। इससे पदाधिकारियों की भूमिका सीमित होगी और अध्यक्ष को अधिक शक्ति मिलने की संभावना है। मसौदे में कहा गया है कि केंद्रीय सचिवालय की संरचना के कारण कुछ नेताओं को मुख्य नेता मानने की गलत धारणा बनती है, जो पार्टी में बहु-केंद्र और द्वैध नेतृत्व की स्थिति पैदा करती है। २. वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद खत्म:
पहले विधान में एक वरिष्ठ उपाध्यक्ष का प्रावधान था, जिसे अब हटाने का प्रस्ताव है। इस कदम से पार्टी में असंतोष बढ़ा है। वरिष्ठ उपाध्यक्ष ईश्वर पोखरेल ने कहा कि यह पद उनके लिए विशेष रूप से नहीं बनाया गया था और इसे हटाने से संगठनात्मक संतुलन पर असर पड़ सकता है। ३. केंद्रीय समिति का आकार:
मसौदे में २५१ सदस्यीय केंद्रीय समिति बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें १ अध्यक्ष, ३ उपाध्यक्ष, १ महासचिव, ३ उपमहासचिव और ७ सचिव शामिल होंगे। पहले १९ सदस्यीय केंद्रीय सचिवालय की व्यवस्था थी। मसौदे में दावा किया गया है कि बड़ी समिति के कारण प्रभावी कार्य विभाजन और गुणवत्तापूर्ण कार्य निष्पादन में बाधा आ रही थी। ४. ७० वर्ष की आयु सीमा हटाने का तर्क:
विधान में पहले मौजूद ७० वर्ष की आयु सीमा को २०२३ वैशाख में निलंबित कर दिया गया था। मसौदे में इसे स्थायी रूप से हटाने का प्रस्ताव है। उपाध्यक्ष विष्णु पौडेल द्वारा तैयार मसौदे में कहा गया है कि योग्यता, अनुभव और स्वीकार्यता नेतृत्व के लिए निर्णायक हैं, न कि उमेर। अंतरराष्ट्रीय और नेपाली राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां ७० वर्ष से अधिक उम्र के नेता सफल रहे हैं।५. सामूहिक निर्णय प्रणाली पर सवाल:
मसौदे में कहा गया है कि बहुपदीय प्रणाली में अध्यक्ष कार्यकारी प्रमुख के रूप में नेतृत्व करते हैं, और अन्य पदाधिकारी उनके और समिति के प्रति जवाबदेही होते हैं। हालांकि, कुछ नेताओं का मानना है कि यह प्रावधान सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को कमजोर करेगा और शक्ति का केंद्रीकरण बढ़ाएगा।
नेताओं की प्रतिक्रिया:
ईश्वर पोखरेल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष ने विधान मसौदे पर सवाल उठाते हुए कहा कि संगठनात्मक संरचना बनाते समय सभी पहलुओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ उपाध्यक्ष का पद उनके लिए व्यक्तिगत नहीं था, बल्कि यह संगठनात्मक संतुलन का हिस्सा था।
असंतोष की आवाज:
कई नेताओं ने पोलिटब्यूरो बैठक में मसौदे के प्रावधानों का विरोध किया है, विशेष रूप से केंद्रीय सचिवालय को हटाने और वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद को खत्म करने के निर्णय को लेकर।
विधान को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया:
पोखरेल ने स्पष्ट किया कि विधान मसौदा अभी अंतिम नहीं है। इसे पोलिटब्यूरो में चर्चा के बाद केंद्रीय समिति और महाधिवेशन प्रतिनिधियों के सामने रखा जाएगा। अंतिम रूप विधान महाधिवेशन और राष्ट्रीय महाधिवेशन में दिया जाएगा।
विवादास्पद प्रश्न:
पार्टी में नेतृत्व को लेकर चर्चा गर्म है। अध्यक्ष केपी शर्मा ओली ने ११वें महाधिवेशन में भी अध्यक्ष बने रहने की बात कही है, जबकि पूर्व राष्ट्रपति विद्यादेवी भण्डारी ने सक्रिय राजनीति में आने का संकेत दिया है। इस बीच, कुछ नेताओं ने इसे पदलोलुपता और पार्टी को कमजोर करने की कोशिश करार दिया है।
निष्कर्ष:
नेकपा एमाले के विधान मसौदे में प्रस्तावित बदलावों ने पार्टी के भीतर नेतृत्व और शक्ति संतुलन को लेकर बहस छेड़ दी है। सामूहिक निर्णय लेने की प्रणाली को कमजोर करने और अध्यक्ष को अधिक शक्तिशाली बनाने के प्रावधानों पर असंतोष बढ़ रहा है। विधान को अंतिम रूप देने से पहले और भी चर्चा और संशोधन की संभावना है।