कोलकाता: राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कालेजों में छात्र संसद के चुनाव कब कराए जाएंगे। हाई कोर्ट के जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस स्मिता दास दे के डिविजन बेंच ने राज्य सरकार को दो सप्ताह के अंदर इसका जवाब देने का आदेश दिया है। राज्य सरकार की तरफ से पिछले आदेश के तहत एक रिपोर्ट वृहस्पतिवार को दाखिल की गई। इसमें कहा गया है कि सारे कालेजों के छात्र संसद कार्यालयों को बंद कर दिया गया है। यहां गौरतलब है कि पिछली सुनवायी में डिविजन बेंच ने यह आदेश दिया था।
एडवोकेट सायन बनर्जी ने दलील देते हुए कहा कि २०१७ से विश्वविद्यालयों और कालेजों में छात्र संसद के चुनाव नहीं कराए गए है। अलबत्ता इन वर्षों में छात्र संसद के कार्यालय बखूबी चलते रहे हैं और छात्र संसद के नाम पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहे हैं। यहां गौरतलब है कि साउथ कलकत्ता कालेज में छात्रा के साथ रेप के बाद यह सवाल उभर कर सामने आया है। छात्र संसद कार्यालय में ही छात्रा के साथ रेप हुआ था। हांलाकि इस बाबत एक पीआईएल २०२२ से हाई कोर्ट में लंबित पड़ी थी। राज्य सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट कल्याण बनर्जी की दलील थी कि कमोबेश सभी विश्वविद्यालयों में स्थायी वायस चांसलर नियुक्त नहीं किए गए हैं। इसके अलावा जो नियुक्तियां की गई है वे सभी राजनीतिक है, इसलिए चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। इसके अलावा २०१७ के रूल्स में संशोधन किया जाना है। इसके जवाब में जस्टिस सेन ने कहा कि वायस चांसलर और कालेज दोनों अलग-अलग इकाई हैं। वायस चांसलरों की नियुक्ति से चुनाव का क्या लेना देना है। एडवोकेट बनर्जी की दलील थी कि यह एक नीतिगत फैसला है। जस्टिस सेन ने कहा कि आप चुनाव की अधिसूचना जारी करे बाकी हम देखेंगे। इसके साथ ही जस्टिस सेन ने कहा कि सभी शैक्षिक संस्थानों की गवर्निग बॉडी से राजनीतिज्ञों को अलग रखा जाए। उनके स्थान पर शिक्षाविदों को रखा जाए। इससे छात्र-छात्राओं को कुछ सीखने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही एंटी रैगिंग कमेटी का गठन किए जाने का भी आदेश दिया।









