इस्कॉन मंदिर में स्नान यात्रा संपन्न, कल से १५ दिन तक बीमार रहेंगे भगवान जगन्नाथ

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सिलीगुड़ी: आज सिलीगुड़ी स्थित इस्कॉन मंदिर जगन्नाथ में स्नान यात्रा के दौरान बलदेव सुभद्रा देवी को हजारों श्रद्धालुओं के दूध, दही, घी, शहद, विभिन्न फलों के रस और पवित्र जल से स्नान कराया गया। आज से भगवान जगन्नाथ आंव लीला (बीमार लीला) करेंगे, इसलिए मंदिर १५ दिन तक बंद रहेगा और आयुर्वेदिक दवाएं दी जाएंगी। मंदिर के अध्यक्ष अखिल आत्म प्रिय दास ने भगवान जगन्नाथ की लीला का वाचन किया। जनसंपर्क अधिकारी कृष्ण दास ने बताया कि आज बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने अभिषेक किया और सभी को महल में भेंट दी गई।
स्नान यात्रा और बुखार की परंपरा क्या है?
अब आप भगवान और बीमार के बारे में सोच रहे हैं? यह परंपरा क्या है? तो आपको बता दें कि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ यात्रा पर निकलते हैं, लेकिन उससे १५ दिन पहले यानी जेष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन उन्हें स्नान कराया जाता है और फिर उन्हें सर्दी में बुखार आ जाता है।
भगवान जगन्नाथ १५ दिनों तक एकांतवास में रहते हैं
जिसके कारण वे १५ दिनों तक एकांतवास में चले जाते हैं और इस कारण भक्त भगवान के दर्शन नहीं कर पाते हैं, जिसके बाद भगवान के स्वस्थ होने के बाद जगन्नाथ यात्रा शुरू होती है। इस परंपरा को स्नान यात्रा कहा जाता है। १०८ कलशों से जल स्नान: इस दिन भगवान जगन्नाथ को १०८ कलशों से जल स्नान कराया जाता है। इसे ‘महा स्नान’ कहा जाता है। इस दौरान भगवान खुले सिंहासन पर विराजमान होते हैं और लाखों भक्त उनके दर्शन करते हैं।
स्नान के बाद क्यों होता है ‘बुखार’? मान्यता है कि स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को ‘बुखार’ आ जाता है। इस कारण उन्हें मंदिर के गर्भगृह से बाहर निकालकर ‘अंसार घर’ नामक विशेष कक्ष में रखा जाता है। यहां भगवान विश्राम करने तक १५ दिन बिताते हैं। इस अवधि को ‘अंसार काल’ कहते हैं। भगवान के ‘ठीक होने’ का समय: इन १५ दिनों तक भक्त भगवान के दर्शन नहीं करते। पुजारियों के अनुसार यह भगवान के ‘ठीक होने’ का समय होता है। इस दौरान उन्हें केवल विशेष औषधीय प्रसाद (जैसे दाल का पानी, चावल की खीर, हर्बल पेय) ही दिया जाता है।
अंसार काल के बाद होती है रथ यात्रा: जब भगवान पूरी तरह ‘ठीक’ हो जाते हैं, तो वे अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विशाल रथों पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। इस दिन को जगन्नाथ रथ यात्रा कहते हैं। पुरी में तीन विशाल रथ – नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ), तलध्वज (बलभद्र) और दर्पदलन (सुभद्रा) – देवताओं की मूर्तियों पर रखे जाते हैं और भक्त उन्हें गुंडिचा मंदिर तक खींचते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा का समय: २०२५ जगन्नाथ रथ यात्रा शुक्रवार, २७ जून, २०२५ को शुरू होने वाली है, क्योंकि आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि २६ जून को दोपहर १:२५ बजे शुरू होगी और २७ जून को सुबह ११:१९ बजे समाप्त होगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व: यह परंपरा हजारों साल पुरानी है और इसे ‘भगवान की वार्षिक यात्रा’ माना जाता है। यह एकमात्र अवसर है जब भगवान आम भक्तों से मिलने के लिए मंदिर से बाहर आते हैं। इस दौरान ‘पहाड़ी’ नामक एक अनूठी रस्म होती है जिसमें देवताओं को झूलते हुए रथ पर लाया जाता है। जो कोई भी इस यात्रा में भाग लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी दुख समाप्त हो जाते हैं।

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