मणिपाल हॉस्पिटल्स कोलकाता में रचा चमत्कार: एक डायलिसिस मे निर्भरबृद्ध मरीज ने मौत काे चकमा दिया

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कोलकाता: उम्र के उस पड़ाव पर जहाँ आमतौर पर लोग जीवन की रफ्तार धीमी कर देते हैं, एक ८५ वर्षीय बुजुर्ग ने जीवन के प्रति अपने अदम्य जज़्बे से सबको चौंका दिया। कमजोर काया लेकिन बुलंद हौसला लिए, लंबे समय से डायलिसिस पर निर्भर यह मरीज बेहोश अवस्था में मस्तिष्क में तीव्र रक्तस्राव से जूझते हुए मणिपाल हॉस्पिटल्स, ढाकुरिया पहुँचे थे।
डॉक्टरों के अनुसार उनकी बचने की संभावना बेहद कम थी। फिर भी आज वह होश में हैं, बात कर रहे हैं और सहारे के साथ खड़े हो पा रहे हैं और अब घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं। उनकी कहानी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, टीम वर्क और जीवन के प्रति अदम्य इच्छाशक्ति की मिसाल है जाे यह साबित करती है कि उम्र चाहे जितनी भी हो, पुनः स्वस्थ होना संभव है।
यह मरीज पहले से ही उच्च रक्तचाप, हृदय की स्टेंटिंग, क्रॉनिक किडनी डिजीज (स्टेज ५, डायलिसिस-निर्भर) और मिर्गी के दौरे जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ चुके थे। अचानक एक दिन घर पर बेहोश हो जाने पर परिवार उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर गाए। अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टरों ने पाया कि उनकी एक पुतली फैल गई थी, जो गंभीर मस्तिष्क चोट का संकेत है।
सीटी स्कैन में मस्तिष्क के अंदर बड़े पैमाने पर सबड्यूरल हैमरेज (रक्तस्राव) पाया गया, जिसने उन्हें कोमा में पहुँचा दिया था। उनकी स्थिति बेहद नाजुक थी — डायलिसिस पर निर्भरता और रक्त पतला करने वाली दवाइयों के कारण रक्तस्राव का खतरा और भी अधिक था। तमाम जोखिमों के बावजूद, डॉक्टरों ने परिवार से विचार-विमर्श कर जीवन बचाने का फैसला लिया।
डॉ. निरूप दत्ता, सलाहकार – न्यूरोसर्जरी, के नेतृत्व में उसी दिन एक जटिल डिकम्प्रेसिव क्रैनियोटॉमी सर्जरी की गई। इस दौरान डॉ. रितेश कौंतिया (सलाहकार – नेफ्रोलॉजी, ट्रांसप्लांट फिजिशियन) और डॉ. प्रखर ज्ञानेश (सलाहकार – एनेस्थेसियोलॉजी) भी मौजूद थे।
डॉ. निरूप दत्ता ने कहा,”यह सर्जरी समय के खिलाफ एक दौड़ थी। उनकी उम्र, डायलिसिस पर निर्भरता, ड्यूल एंटीप्लेटलेट थेरेपी और खराब न्यूरोलॉजिकल स्टेटस, सबकुछ हमारे खिलाफ था। लेकिन हमें लगा कि उन्हें एक मौका जरूर मिलना चाहिए। परिवार ने भी हमारा साथ दिया। हमने बड़ा रक्त का थक्का हटाया और खोपड़ी की हड्डी को उनके पेट में संरक्षित किया, जिसे भविष्य में फिर से लगाया जाएगा।”
सर्जरी के बाद के दिन बेहद चुनौतीपूर्ण रहे। मरीज को गंभीर संक्रमण हो गया और वे सेप्टिक शॉक में चले गए, जिससे गहन चिकित्सा देखभाल, निरंतर डायलिसिस और एडवांस एंटीबायोटिक थेरेपी की आवश्यकता पड़ी। ट्रैकियोस्टॉमी (गले में सांसनली) की भी तैयारी थी, लेकिन धीरे-धीरे सुधार के चलते उसे टाल दिया गया, जो कि तेज रिकवरी का अहम संकेतक था।
डॉ. रितेश कौंतिया ने कहा,”ऐसे गंभीर हालत वाले मरीज में डायलिसिस प्रबंधन बेहद चुनौतीपूर्ण था। संक्रमण और ट्रॉमा के बीच भी हमें उनके गुर्दों को निरंतर सहारा देना पड़ा। न्यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी और क्रिटिकल केयर टीमों के घनिष्ठ समन्वय ने ही इसे संभव बनाया। धीरे-धीरे, मरीज ने होश में आना शुरू किया, फिर छोटे-छोटे निर्देशों का पालन किया और बाद में बोलने की कोशिश भी की। फिजियोथेरेपी और मेडिकल सपोर्ट के सहारे वे आज सहारे के साथ बैठने और खड़े होने में सक्षम हैं।”
डॉ. प्रखर ज्ञानेश ने कहा,”चूंकि मरीज पहले से ही डायलिसिस पर थे, हम सामान्य दवाओं की मात्र का केवल एक तिहाई हिस्सा ही सुरक्षित रूप से दे सकते थे। मस्तिष्क की चोट का इलाज करते हुए गुर्दों की रक्षा करना बहुत कठिन लेकिन आवश्यक था। सीमाओं के बावजूद, मरीज की जीवटता ने उन्हें बचा लिया।”
अपनी कमजोरी और दोबारा रक्तस्राव के खतरे के बावजूद, मरीज अब बिना किसी सहायक यंत्र के सांस ले पा रहे हैं और सहारे से खड़े हो पा रहे हैं। १४ दिन के इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है, और अब वे घर पर डायलिसिस, फिजियोथेरेपी और रेगुलर फॉलोअप की देखभाल योजना के साथ रहेंगे। दो महीने बाद उनकी दूसरी सर्जरी (खोपड़ी की हड्डी वापस लगाने के लिए) की जाएगी, जब उनकी स्थिति और स्थिर हो जाएगी।
यह असाधारण मामला उन परिवारों के लिए आशा की किरण है जो वृद्ध मरीजों के उपचार को लेकर हताश हो जाते हैं। यह दिखाता है कि सही इलाज, जज्बा और टीम वर्क से असंभव भी संभव हो सकता है।

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