नई दिल्ली: भूकंप और परमाणु परीक्षण के बीच संबंध पर एक नया अध्ययन सामने आया है। यह शोध लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी के भूकंपविज्ञानियों द्वारा किया गया था। शोध के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि कुछ भूकंप वास्तव में गुप्त परमाणु परीक्षणों के कारण हो सकते हैं।
यह बात जोशुआ कारमाइकल के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में सामने आई। यह शोध अमेरिका की सीस्मोलॉजिकल सोसायटी के बुलेटिन में प्रकाशित हुआ है। अनुसंधान में भूकंप और गुप्त परमाणु विस्फोटों से उत्पन्न कंपन के बीच अंतर करना बहुत कठिन है।
शोध से पता चला है कि नई तकनीक के साथ भी गुप्त परमाणु विस्फोटों का पता लगाना कठिन होगा। जोशुआ और उनके सहयोगियों ने अपने शोध में पाया कि उत्तर कोरिया ने पिछले २० वर्षों में छह परमाणु परीक्षण किए हैं।
वहां भूकंपमापी यंत्रों की संख्या में वृद्धि से पता चला है कि परीक्षण स्थल के आसपास बड़ी संख्या में छोटे भूकंप आ रहे हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे भूकंप के दौरान विस्फोटों के संकेतों की पहचान करना बहुत कठिन हो जाता है।
अब तक यह माना जाता था कि भूकंप के संकेत विस्फोट को छिपा नहीं सकते। लेकिन एक नये अध्ययन ने इसे गलत साबित कर दिया है। जोशुआ का कहना है कि भूकंप और परमाणु परीक्षण के झटके के संयोजन को अलग करना मुश्किल होगा। यहां तक कि आधुनिक तकनीक भी दोनों झटकों के बीच अंतर करने में विफल रहती है, क्योंकि दोनों झटके एक जैसे होते हैं। वैज्ञानिकों ने पी-तरंगों और एस-तरंगों के अनुपात का उपयोग करके इस समस्या को हल करने का प्रयास किया है।
अनुसंधान दल ने पता लगाया है कि विशेष प्रौद्योगिकी १.७ टन के दबे हुए विस्फोट की ९७ प्रतिशत सटीकता के साथ पहचान कर सकती है। हालांकि, यदि विस्फोट का झटका १०० सेकंड के भीतर और २५० किलोमीटर के दायरे में आने वाले भूकंप के साथ मेल खाता है, तो यह तकनीक केवल ३७ प्रतिशत सटीक परिणाम देती है। यानि ऐसी स्थिति में यह तकनीक कुछ हद तक विफल हो जाती है।
जोशुआ के अनुसार, आज के सर्वोत्तम डिजिटल सिग्नल डिटेक्टर भी विस्फोट और भूकंपीय झटके के संयोजन के कारण विस्फोट का पता लगाने में विफल हो जाते हैं। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि भूकंप के झटकों में विस्फोट के संकेत छिपे हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि भूकंप संभावित क्षेत्रों में विस्फोटों का पता लगाना बहुत कठिन होगा।