नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने महीनों पहले बांग्लादेश निर्वासित की गई गर्भवती महिला और उसके आठ साल के बच्चे को ‘मानवीय आधार’ पर भारत में प्रवेश की बुधवार को अनुमति दे दी। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार को नाबालिग बच्चे की देखभाल करने और बीरभूम जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को गर्भवती महिला सुनाली खातून को हर संभव चिकित्सा सहायता मुहैया कराने का निर्देश दिया।
पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के इस बयान पर गौर किया कि सक्षम प्राधिकारी ने मानवीय आधार पर महिला और उसके बच्चे को देश में प्रवेश देने की सहमति जता दी है और उन्हें निगरानी में रखा जाएगा।
शीर्ष अदालत कलकत्ता उच्च न्यायालय के २६ सितंबर के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में खातून और अन्य को बांग्लादेश भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था और इस कार्रवाई को ‘अवैध’ करार दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि अंततः उन्हें दिल्ली वापस लाया जाए, जहां से उन्हें पकड़कर बांग्लादेश भेजा गया था।
सरकार ने महिला को बांग्लादेश का नागरिक बताया:
महिला के पिता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और संजय हेगड़े ने कहा कि यह उचित होगा कि महिला और उसके बच्चे को उनके गृह जिले पश्चिम बंगाल के बीरभूम लाया जाए, जहां उसके पिता रहते हैं।” उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि बांग्लादेश में सुनाली के पति समेत अन्य लोग भी लोग हैं, जिन्हें भारत वापस लाने की आवश्यकता है। इसके लिए मेहता केंद्र से आगे के निर्देश ले सकते हैं।
मेहता ने कहा कि वह उनके भारतीय नागरिक होने के दावे को चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि वह मानते हैं कि वे बांग्लादेशी नागरिक हैं। मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ मानवीय आधार पर उस महिला और उसके बच्चे को भारत में आने की अनुमति दे रही है।
न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि यदि महिला यह प्रमाणित कर देती है कि वह भोदू शेख की पुत्री है, तो यह उसकी भारतीय नागरिकता स्थापित करने के लिए पर्याप्त होगा। उच्चतम न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई १० दिसंबर को निर्धारित की।
महिला के पिता ने आरोप लगाया कि दिल्ली के रोहिणी इलाके के सेक्टर २६ में दो दशक से ज्यादा समय से दिहाड़ी मजदूरी करने वाले इन परिवारों को पुलिस ने १८ जून को बांग्लादेशी होने के शक में पकड़ लिया और बाद में २७ जून को सामा पार भेज दिया।








