कोलकाता: पश्चिम बंगाल की राजनीति में छात्र संगठन (टीएमसीपी) का स्थापना दिवस अब केवल एक रस्म भर नहीं, बल्कि युवाओं से संवाद और राजनीतिक दिशा तय करने का महत्वपूर्ण मंच बन चुका है। इसके पीछे प्रमुख चेहरा हैं – अभिषेक बनर्जी।
पिछले पाँच वर्षों में उन्होंने इस मंच का प्रयोग सिर्फ उत्सव के लिए नहीं, बल्कि संगठनात्मक मजबूती, रणनीतिक संदेश और जन-समस्याओं को उठाने के लिए किया है।
२०२२: युवा संगठन को नई दिशा:
साल २०२२ में, अभिषेक बनर्जी ने टीएमसीपी स्थापना दिवस को युवाओं से सीधे संवाद का जरिया बनाया। उनका फोकस था – युवा संपर्क और संगठन की मजबूती। उन्होंने साफ संदेश दिया कि पार्टी का भविष्य युवाओं के कंधों पर है, और छात्र राजनीति को केवल चुनावी ट्रेनिंग नहीं बल्कि सामाजिक नेतृत्व का प्रशिक्षण मंच बनाना होगा।
२०२३: चुनावी रणनीति की नींव:
२०२३ का टीएमसीपी दिवस संगठन के विस्तार और चुनावी तैयारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। यहां उन्होंने बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने की बात कही और टीएमसीपी को सिर्फ छात्र राजनीति तक सीमित न रखकर, युवाओं के सामाजिक-राजनीतिक सशक्तिकरण की प्रयोगशाला बनाने का आह्वान किया। यह वह समय था जब पार्टी पंचायत चुनावों और आगामी लोकसभा चुनावों की रणनीति गढ़ रही थी।
२०२४: राजनीतिक मोर्चेबंदी का मंच:
२०२४ में अभिषेक बनर्जी ने इस मंच का इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और केन्द्रीय एजेंसियों के कथित दुरुपयोग के खिलाफ जनमत तैयार करने के लिए किया। उन्होंने “लाश की राजनीति” और बंगाल में “बंद संस्कृति” को उजागर करते हुए विपक्ष की आलोचना की। यह भाषण न केवल राजनीतिक रूप से तीखा था, बल्कि युवा वर्ग को सोचने, सवाल करने और सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करने वाला भी था।
२०२५: आयोग पर तीखा हमला किया:
२०२५ के स्थापना दिवस पर उन्होंने चुनाव आयोग पर तीखा हमला किया। उन्होंने विशेष सघन निर्वाचन सूची संशोधन (एसआईआर) को लेकर कहा कि अब मतदाता सरकार चुनने के बजाय सरकार मतदाताओं का चयन कर रही है। एक ऐसी प्रक्रिया जो लोकतंत्र की भावना का उल्लंघन है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर किसी भी वैध मतदाता को हटाया गया, तो वह १० लाख बंगालियों’ के साथ दिल्ली रैली करेंगे और राजपथ घेराव करेंगे।
सुरक्षा और जवाबदेही का मुद्दा:
२०२५ के स्थापना दिवस पर, जब कई जिलों में छात्राओं की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे थे, अभिषेक बनर्जी ने सुरक्षा को प्राथमिकता दी। उन्होंने कॉलेज परिसरों में सीसीटीवी लगाने की बात की और साथ ही केन्द्रीय एजेंसियों पर पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया। यह टीएमसीपी के एजेंडे में “सुरक्षा और गरिमा” को स्थान देने का संकेत था – एक ऐसा मुद्दा जो हर छात्र से सीधे जुड़ता है।
युवाओं के मंच से जनमत तक:
टीएमसीपी स्थापना दिवस अब एक नई पहचान ले चुका है – युवाओं की आकांक्षा और राजनीतिक दिशा का संगम स्थल बन चुका है। अभिषेक बनर्जी ने इसे सिर्फ छात्र सभा नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक-संवाद मंच बना दिया है जहां विचार, योजना और प्रतिरोध – तीनों का समन्वय दिखता है। उनकी यह रणनीति दर्शाती है कि वह केवल वर्तमान नहीं, राजनीति का भविष्य गढ़ने में लगे हैं और वह भविष्य युवाओं के हाथों में है।