अनिल तिवारी
नेपाल–भारत की खुली सीमा ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। यह व्यवस्था दोनों देशों के परस्पर विश्वास, सांस्कृतिक घनिष्ठता और मित्रता का प्रतीक रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस मित्रता की खुली खिड़की पर भारत-विरोधी शक्तियों की बुरी नज़रें पड़नी शुरू हो गई हैं। खासकर चीन की गतिविधियाँ नेपाल के तराई क्षेत्रों में जिस प्रकार से बढ़ रही हैं, वह केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक और खुफिया गतिविधियों की ओर भी इशारा कर रही हैं।
भारत और नेपाल की खुली सीमा को हाल के वर्षों में चीनी नागरिकों द्वारा बार-बार प्रयोग किया गया है। मई २०२५ में बिहार के रक्सौल स्थित मैत्री पुल के पास एक चीनी नागरिक हाई जेसी और उसके नेपाली सहयोगी श्यामल कुमार दहाल को भारत में अवैध प्रवेश करते समय गिरफ्तार किया गया। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि वे दोनों एक इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में कार्यरत थे। हाई जेसी पर्यटक वीजा पर नेपाल आया था, लेकिन भारत में उसके प्रवेश का उद्देश्य स्पष्ट नहीं था।
इसी महीने, ७ मई को चार अन्य चीनी नागरिकों (तीन पुरुष और एक महिला) को बिना वीजा भारत में प्रवेश करने की कोशिश करते हुए एसएसबी द्वारा पकड़ा गया। नेपाल की सीमा से लगे भारत के मधुबनी जिले के जटही नाके पर भी दो अन्य चीनी नागरिकों वू हेलोंग और शेंग जुन योंग को बिना वीजा फोटो खींचते हुए पकड़ा गया। उनके पास कोई वैध दस्तावेज़ नहीं था और जांच में वू हेलोंग के मोबाइल में खालिस्तान समर्थक ५० से अधिक वीडियो मिले, जो मई २०२५ के बाद डाउनलोड किए गए थे। यह घटनाएं भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चिंता का कारण बनी हैं।
जून २०२४ में एक और सनसनीखेज मामला सामने आया, जब बिना पासपोर्ट और वीजा भारत में घुसने वाले ६३ वर्षीय चीनी नागरिक ली झिया ने बिहार की मुजफ्फरपुर जेल में आत्महत्या कर ली। उन्होंने चश्मे के कांच से गले, हाथ और निजी अंग पर घाव करके खुद को घायल कर लिया था। इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उनके पास से चीन का नक्शा, तीन मूर्तियां, भारतीय व नेपाली मुद्रा और मोबाइल फोन बरामद किया गया। भारतीय मीडिया का दावा है कि उसने अपनी जासूसी की सच्चाई उजागर हो जाने के डर से आत्महत्या की।

व्यापार के आवरण में जासूसी?
तराई क्षेत्र में हाल के वर्षों में चीनी गतिविधियाँ उल्लेखनीय रूप से बढ़ी हैं। भारत से सटी इस संवेदनशील पट्टी में चीनी व्यापारी, निवेशक, तकनीकी कर्मचारी और कथित सांस्कृतिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में सक्रिय हो चुके हैं। नेपाल में व्यापार के नाम पर शुरू की गई गतिविधियाँ कई बार जासूसी के संदेह के घेरे में आ चुकी हैं। चीनी नागरिक नेपाली नागरिकता लेकर सीमावर्ती क्षेत्रों में बस रहे हैं, स्थानीय राजनीति, स्कूल और मीडिया में घुसपैठ कर रहे हैं।
नेपाल–भारत सीमा के पास चीनी नागरिकों द्वारा संचालित मोबाइल दुकानों और सर्विस सेंटरों से विशेष सर्वर युक्त सीसीटीवी कैमरे बेचे जाते हैं, जिनकी निगरानी चीन में बैठकर की जा सकती है। यह तकनीक सीमा पार भारत के कस्टम चेकपोस्ट, प्रशासनिक कार्यालयों और भीड़भाड़ वाले स्थलों की निगरानी के लिए उपयोग की जाती है। इस प्रकार, यह केवल व्यापार नहीं बल्कि एक ‘साइबर इंटेलिजेंस नेटवर्क’ जैसा प्रतीत होता है।
नेपाल के बौद्ध मठों, मदरसों और सांस्कृतिक संगठनों में चीनी प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। नेपाल की खुली नीति और धार्मिक सहिष्णुता का लाभ उठाते हुए चीन इन संगठनों के माध्यम से अपने “सॉफ्ट पावर नेटवर्क” को विस्तार दे रहा है। इसके ज़रिए वह धार्मिक पहचान के नाम पर सामरिक जानकारी एकत्रित करने और जनभावनाओं को प्रभावित करने का प्रयास कर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि चीन पाकिस्तान के सहयोग से भारत के सीमावर्ती इलाकों में धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के प्रयास में भी संलग्न है। नेपाल को इस पूरे प्रयोग का ‘जियोपोलिटिकल प्रयोगशाला’ बना देने की योजना गहराती जा रही है।
नेपाल में चीनी निवेश अब तराई के बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं में केंद्रित हो गया है। बुटवल–गोरुसिंगे सड़क मार्ग, भैरहवा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा जैसी परियोजनाएं चीनी प्रभाव के अंतर्गत हैं। इनमें कार्यरत चीनी तकनीकी कर्मी न केवल काम में लगे हैं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों की नियमित निगरानी भी करते हैं। स्थानीय राजनीतिक दलों को सहायता और प्रभावित करने की कोशिश, फर्जी कंपनियों के ज़रिए आर्थिक लेन-देन और ‘इकोनॉमिक स्पाइंग’ जैसे आरोप लग चुके हैं।
भारत की निगरानी और नेपाल की उदासिन्ता
भारत ने नेपाल–भारत सीमा पर हो रही इन गतिविधियों को लेकर बार-बार चिंता जताई है। भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे सीमावर्ती राज्यों में चीनी गतिविधियों को सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा माना जा रहा है। हालांकि भारत सजग है, लेकिन नेपाल की प्रशासनिक कमजोरी, आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता और स्पष्ट विदेश नीति की कमी से चीन को सीमावर्ती क्षेत्रों में पैर जमाने का मौका मिल रहा है।
काठमांडू और लुम्बिनी जैसे धार्मिक और पर्यटक स्थलों पर चीनी नागरिकों की बढ़ती उपस्थिति और वहाँ से भारत में प्रवेश की घटनाएँ अब बार-बार सामने आने लगी हैं। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि चीन की रणनीति केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि दीर्घकालीन सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव की स्थापना पर केंद्रित है।
नेपाल–भारत की खुली सीमा और प्रशासनिक व्यवस्था की कमज़ोरियाँ चीन के लिए अवसर बन गई हैं। व्यापार, शिक्षा, संस्कृति और विकास के नाम पर घुसपैठ कर रहा चीनी नेटवर्क अब केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि सुरक्षा और सांस्कृतिक संप्रभुता का भी सवाल बन चुका है।

यदि नेपाल और भारत ने मिलकर रणनीतिक समझदारी, तकनीकी निगरानी और राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई, तो आने वाले वर्षों में यह खतरा और अधिक बढ़ सकता है। सीमाओं की सुरक्षा केवल भौगोलिक ही नहीं, वह राष्ट्रीय आत्मसम्मान, अस्तित्व और स्वतंत्रता का प्रतीक भी होती है। इसलिए इस खतरे से निपटना दोनों देशों की साझा जिम्मेदारी बनती है।
सिमानाकासे चिनियाद्धारा लगातार भारत प्रवेश प्रयास साफ है, यह सिर्फ आप्रवासन या व्यापार का सवाल नहीं — यह नेपाल की भू-राजनीतिक स्थिति, उसकी सार्वभौमिकता, और भारत-नेपाल संबंधों की आधारशिला से जुड़ा विषय है। अतः समय रहते जागरूकता और सक्रियता आवश्यक है, अन्यथा परिणाम गहरे और दीर्घकालीन हो सकते हैं।