२००६ मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट: सभी १२ आरोपित बरी

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मुंबई: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को २००६ में ११ जुलाई को मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए विस्फोटों के सभी १२ आरोपियों को बरी कर दिया। मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है और यह मानना मुश्किल है आरोपियों ने अपराध किया है। अभियोजन पक्ष अपराध में इस्तेमाल किए गए बमों के प्रकार को भी रिकॉर्ड में लाने में विफल रहा है और जिन सबूतों पर उसने भरोसा किया है, वे आरोपियों को दोषी ठहराने में विफल रहे हैं। अदालत का यह फैसला महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के लिए बेहद शर्मिंदगी की बात है, जिसने इस मामले की जाँच की थी। एजेंसी ने दावा किया था कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ (सिमी) के सदस्य थे और उन्होंने आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के पाकिस्तानी सदस्यों के साथ मिलकर साजिश रची थी।
तुरंत जेल से रिहा करने का आदेश:
पीठ ने विशेष अदालत द्वारा २०१५ में ५ लोगों को सुनाई गई मौत की सज़ा और बाकी ७ आरोपियों को आजीवन कारावास की सज़ा की पुष्टि करने से इनकार कर दिया और उन्हें बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अगर आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाना चाहिए। यह फैसला शहर के पश्चिमी रेलवे नेटवर्क को हिला देने वाले आतंकवादी हमले के १९साल बाद आया है। उस दिन, ११ जुलाई २००६ को, मुंबई की लोकल ट्रेन में ७विस्फोट हुए थे, जिसमें १८० से ज़्यादा लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे। इस बीच, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले को लेकर महाराष्ट्र सरकार को घेरने की कोशिश की। उन्होंने पूछा कि क्या महाराष्ट्र सरकार इस मामले की जाँच करने वाले अपने आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी।
फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है महाराष्ट्र सरकार:
महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि राज्य सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के गुण-दोष का आकलन करेगी। उन्होंने कहा कि इसके बाद ही राज्य सरकार तय करेगी कि इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए या नहीं। उन्होंने कहा कि अगर राज्य के पास कोई अतिरिक्त जानकारी है तो मुख्यमंत्री फडणवीस उसे विस्तार से पेश करेंगे। एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना के नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य संजय निरुपम ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि सवाल उठता है विस्फोटों की साजिश किसने रची। उन्होंने यह भी कहा यह भी देखना होगा कि जांच एजेंसियों के काम में कोई कमी तो नहीं थी। मंत्री और राकांपा नेता छगन भुजबल ने कहा राज्य सरकार फैसले का अध्ययन करेगी और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।
विशेष अदालत ने पांच को सुनाई थी फांसी की सजा:
इस मामले में २०१५ में एक विशेष अदालत ने १२ लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से ५ को फांसी और बाकी सात को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। अपील की सुनवाई लंबित रहने के दौरान एक दोषी की मृत्यु हो गई। विशेष अदालत ने जिन दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी, उनमें कमाल अंसारी (अब मृत), मोहम्मद फैसल अताउर रहमान शेख, एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल थे। विशेष अदालत ने उन्हें बम रखने और कई अन्य आरोपों में दोषी पाया था। इसने तनवीर अहमद मोहम्मद इब्राहिम अंसारी, मोहम्मद मजीद मोहम्मद शफी, शेख मोहम्मद अली आलम शेख, मोहम्मद साजिद मरगूब अंसारी, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहैल महमूद शेख और ज़मीर अहमद लतीउर रहमान शेख को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। एक आरोपी वाहिद शेख को निचली अदालत ने २००५ में बरी कर दिया था।
स्वीकारोक्ति भी खारिज:
उच्च न्यायालय ने मामले में कुछ आरोपियों के कथित स्वीकारोक्ति को भी खारिज कर दिया और कहा कि ऐसा लगता है कि ये बयान उन्हें प्रताड़ित करने के बाद लिए गए थे। अदालत ने आरोपियों की पहचान परेड को भी खारिज कर दिया और कहा कि यह परेड कराने वाले संबंधित पुलिस को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था। उच्च न्यायालय ने
गवाहों द्वारा दिए गए साक्ष्यों को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिनमें आरोपी को चर्चगेट रेलवे स्टेशन लाने वाले टैक्सी चालक, आरोपी को बम लगाते देखने वाले लोग, बम बनते देखने वाले लोग और कथित साज़िश के गवाह शामिल थे। अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान विश्वसनीय या भरोसेमंद नहीं हैं और आरोपी को दोषी ठहराने के लिए निर्णायक नहीं हैं। इन साक्ष्यों पर भरोसा नहीं किया जा सकता और बचाव पक्ष इन साक्ष्यों को गलत साबित करने में सफल रहा है।

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