चन्दन दुबे
वैसे तो इस सरकार से जनता के जितने सवाल हैं उस पर एक किताब लिखी जा सकती है किन्तु तत्काल
असाढ़े विकासकी प्रगतिशीलता, स्पेन भ्रमणकी उपलब्धियां, न्यापालिका की स्थिती और गिरती साख, विधा भण्डारी द्वारा सक्रिय राजनीति में लौटने की घोषणा और खड़ग प्रसाद ओली नेतृत्व की इस सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल का लेखाजोखा इत्यादि वर्तमान परिवेश में ये सारे वो ज्वलंत मुद्दे हैं जिनपर प्रधानमंत्री ओली को जवाब देने की अवस्था तथा आवश्यकता है।
संविधान संसोधन, राष्ट्रिय सहमति, भ्रष्टाचार नियंत्रण, विकास, सुशासन की डेलिवरी और सात बुँदे सहमति का कार्यान्वयन ईन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रधानमंत्री ओली को देना है।
जवाब देने के लिए जुलाई १५को एक वर्ष पूरा कर रहे इस सरकार के मुखिया ओली के सामने प्रश्नों की लम्बी फेहरिस्त है।
लेकिन तथ्यगत जवाब नहीं होने के कारण प्रधानमंत्री ओली अपनी विशेष शैली में उत्तर की तैयारी में जुट गए हुए लगते हैं।
”भगवान श्रीराम की जन्मभूमि नेपाल में ढूंढना उसी तैयारी का हिस्सा है।”
फिलहाल न राम नवमी है न विवाह पंचमी, अगर त्यौहार की बात करें तो मुहर्रम चल रहा है। हसन और हुसैन की बात करनी चाहिए थी, किन्तु नहीं उन्होंने असमय ही राम जन्मभूमि और शिव की चर्चा की। उनको पता है की नेपाल में एक खास समूह है जिसको किसी भी मौके पर भारत के विरुद्ध एक्टिव किया जा सकता है। और कुछ समय के लिए ही सही देश का ध्यान विचलित किया जा सकता है।
के पी स्वयं हिन्दू हैं और नेपाल के पहाड़ी समुदाय से आने वाले “कुमाई” ब्राह्मण हैं। जिनको रामायण, महाभारत, शिवपुराण, गीता, वेद और उपनिषद के बारे में जानकारी अवश्य है। नेपाल के पहाड़ी समाज में एक कहावत प्रसिद्ध है ” कुमाई को घुमाई ” इसका तात्पर्य है की ये ” कुमाई ” इतने शातिर होते हैं की विषय बस्तु को अपने अनुकूल घुमा कर प्रस्तुत करना और लाभ लेना इनकी फ़ितरत होती है।
के पी ओली अंतर्मन से अयोध्या में राम जन्मभूमि को लेकर किसी दुविधा में नहीं हैं। वो इस तरह का अप्रासंगिक बयानों के जरिए फिलहाल नेपाली जनता के ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाना चाह रहे हैं। प्रश्न आने से पहले की तैयारी करते हुए तत्काल एक नए विवाद को जन्म देना चाहते हैं। उनके बयानों को पढ़िए, उन्होंने कहा है की नेपाल में राम जन्मभूमि खोजने की आवश्यकता है। लोगों से अपील किया है की आप निडर होकर इसका प्रचार प्रसार करें। दरअसल प्रधानमंत्री ओली लोगों को गलत प्रोपगेंडा में उलझाकर फिलहाल मीडिया और जनता के सवालों से बचना चाह रहे हैं। लेकिन इस बेतुके बयान को निरर्थक भी नहीं माना जाय, इसके पीछे ओली की शातिरता भी साफ दिखाई दे रही है।
जुन २८ मदन जयन्ती के दिन पूर्व राष्ट्रपति विधा देवी भण्डारी ने सक्रिय राजनीति में लौटने का शंखनाद कर दिया। हालांकि आत्मविश्वास से भरे ओली को इस बाद की कतई उम्मीद नहीं थी। अन्यथा हो सकता था की भगवान श्रीराम का जन्मदर्ता ओली के स्पेन जाने से पहले ही जारी कर दिया जाता।
आईए अब इस एंगल को सविस्तार समझने की कोशिश करते हैं। जेठ ११ गत्ते से १९ गत्ते तक चीन में आयोजित फोर्थ डाइलग एक्स्चेन्ज म्युचुअल लर्निङ सिभिलाइजेसन कार्यक्रम में भाग लेने पूर्व प्रधानमंत्री विद्या देवी भण्डारी चीन गई थीं। जहाँ की सरकार ने उनको विशिष्ट श्रेणी की अतिथि मानते हुए उनका स्वागत और सत्कार किया था। भण्डारी के इस भ्रमण को हाई लेवल डेलिगेशन नाम दिया गया था। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि, बेइजिङ्ग पहुंचते ही उच्च तह के नेताओं ने उनका एयरपोर्ट पर स्वागत किया था। इस दौरे पर उन्होंने चिनियाँ सत्तारूढ़ पार्टी सीपीसी के अंतर्राष्ट्रीय विभाग प्रमुख लिउ जिनचाओ और उप राष्ट्रपति हान चेङ्ग से महत्वपूर्ण मुलाक़ात भी की थी। विधा भण्डारी को चीन में नेपाल के विशिष्ट नेता के हैसियत से विभिन्न कार्यक्रमों में प्रमुख वक्ता के तौर पर अवसर देकर भी सम्मानित किया गया।
पूर्व राष्टपति भण्डारी फिलहाल नेपाल या नेकपा एमाले किसी के लिए भी औपचारिक प्रतिनिधित्व करने के लिए योग्य नहीं हैं।
यधपी चीन द्वारा श्रीमती भण्डारी के इस उच्च स्तरीय स्वागत और सम्मान को राजनीतिक चश्मे से देखा जा रहा है।
जानकारों की मानें तो सीपीसी पार्टी विधा भण्डारी को नेकपा एमाले के अगले महाधिवेशन से अध्यक्ष बनाना चाहती है और उन्हीं के द्वारा पुनः बाम एकता का प्रयास करना चाहती है।
इस अनुमान पर अमल करना इसलिए भी जरुरी हो जाता है क्यूंकि चीन भ्रमण से लौटने के तुरन्त बाद मदन जयन्ती के अवसर पर विद्या भण्डारी ने सक्रिय राजनीति में लौटने की घोषणा भी कर दी है।
इन्ही परिस्थितियों को समझते हुए प्रधानमंत्री ओली ने “राम जन्मभूमि नेपाल में खोजने” का विवादित बयान देकर बेईजिङ्ग को भी साधने की कोशिश की है। लेकिन उनके इस बयान ने ८० प्रतिशत से अधिक नेपाली हिन्दुओं के धार्मिक आस्था और विश्वास को आहत कर दिया है। सनातन हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों ने ओली के इस बेतुके और तथ्यहिन बयानों की निन्दा करनी सुरु कर दी है।
रामायण के अनुसार नेपाल के अंदर राम की नजदीकियां मिथिलांचल और जनकपुरधाम से मानी जाती है क्यूंकि यहां भगवान श्रीराम का ससुराल है ऐसी मान्यता है।
यही कारण है की मिथिलांचल और जनकपुरधाम के लोगों में ओली के इस बयान को लेकर एक बार फिर से चर्चा गर्म हो गई है।
प्रधानमंत्री ओली अब नेकपा एमाले के भीतर ही आलोचना और विरोध का शिकार होने लगे हैं। विद्या देवी भण्डारी के द्वारा उनको कड़ी चुनौती मिलने सम्भावनाएं काफ़ी बढ़ गई हैं। इधर जनता और मीडिया भी ईन वाहियात बयानों से नहीं भटकने वाली है।
पार्टी, मीडिया और देश को समुचित जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री को देश में सुशासन डेलिवरी करने के समुचित उपाय, भ्रष्टाचार नियंत्रण, युवाओं का पलायन रोकने के उपाय और बतौर प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष अपनी नेतृत्व शैली में सुधार करना होगा।