पूर्वोत्तर भारत का प्रसिद्ध अंबुबाची मेला आज से शुरू

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गुवाहाटी: पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य में आज से प्रसिद्ध अंबुबाची मेला शुरू हो रहा है। यह मेला मातृ शक्ति के महत्व को सामने लाने वाले मासिक धर्म के उत्सव के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। प्रसिद्ध अंबुबाची मेला असम के गुवाहाटी में कामाख्या देवी मंदिर से जुड़ा हुआ है। आपको बता दें कि इस मंदिर की महिमा और इससे जुड़ी मान्यताएं इतनी व्यापक हैं कि देश-विदेश से श्रद्धालु इसकी एक झलक पाने के लिए आते हैं। इस मेले को पूर्वोत्तर का महाकुंभ कहा जाता है।
क्या है अंबुबाची मेला और इससे जुड़ी मान्यताएं और मिथक क्या हैं?
असम के गुवाहाटी में स्थित प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में हर साल आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म यानी रजस्वला होने का उत्सव है। यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि महिला शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया को सम्मान और पवित्रता के साथ देखने का सामाजिक संदेश भी देता है। इस वर्ष मेला २२ जून से प्रारंभ होकर २६ जून तक चलेगा। गुवाहाटी पुलिस आयुक्त पार्थ सारथी महंत के अनुसार प्रशासन इस तरह से पूरी तरह तैयार है। मंदिर प्रशासन के अनुसार इस महायोग के दौरान २२ जून को दोपहर बजकर ४८ मिनट पर कपाट बंद कर दिए जाएंगे। इसके बाद २६ जून को देवी स्नान और दैनिक अनुष्ठान के बाद मंदिर के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इस बीच २२ से २७ जून तक वीआईपी दर्शन के लिए कोई पास जारी नहीं किए जाएंगे। चार दिनों तक चलने वाला यह उत्सव देवी कामाख्या की वार्षिक मासिक धर्म का प्रतीक है। मान्यता के अनुसार तंत्र साधना की सिद्धि अंबुवासी योग के दौरान होती है। इसीलिए नीलांचल पहाड़ी की कई गुफाओं में तंत्र साधक इस दौरान तंत्र साधना की अंतिम क्रिया पूर्ण करते थे मान्यता है कि जब सुदर्शन चक्र से देवी सती के अंग कटकर जमीन पर गिरे तो योनि भाग यहां गिरा था। यही कारण है कि इसे कार्य क्षेत्र, कामरूप यानी कामदेव का क्षेत्र भी कहा जाता है। जिस स्थान पर देवी सती का योनि भाग गिरा था (नीलाचल पहाड़, जो गुवाहाटी से करीब १४ किलोमीटर दूर है) वहां विश्व प्रसिद्ध कामाख्या देवी का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को तंत्र साधना का प्रमुख स्थान माना जाता है। हर साल देश-दुनिया से मंत्र-साधक अम्बुवासी मेले में आते हैं। मां तीन दिनों के लिए रजस्वला हो जाती हैं, इसलिए इस दौरान मां के दर्शन नहीं होते। मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। यह सृजनात्मक शक्ति, स्त्रीत्व, प्रजनन क्षमता की उर्वरता का उत्सव है। मान्यता के अनुसार मां के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के चारों ओर सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के पट खुलते हैं तो यह वस्त्र मां के रजस्वला होने से भी अधिक लाल हो जाता है। कहते हैं कि जिस भी भक्त को यह कपड़ा मिलता है, उसके कष्ट दूर हो जाते हैं। हर साल जून माह में यहां मेला लगता है।
खेतों में हल नहीं चलेगा, पूजा-अर्चना नहीं होगी:
मां कामाख्या धाम मंदिर के कपाट बंद होते ही किसानों से जुड़े सभी कार्य बंद हो जाते हैं। चार दिनों तक संकल्प नहीं लेंगे, खेत में नहीं जाएंगे। बगीचे में कोई फल या सब्जी नहीं तोड़ी जाएगी। बाजार में सिर्फ वही सब्जियां आएंगी जो टूट चुकी हों। इस दौरान घरों और मंदिरों में पूजा-पाठ नहीं होगा। कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं होंगे, सिर्फ तप किया जा सकेगा।
उमानंद के दर्शन किए बिना अधूरे हैं दर्शन:
ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में देवी के मंदिर के पास ही उमानंद भैरव का भव्य मंदिर है। मान्यता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के कारण प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर गर्भ से नहीं बल्कि गर्भ से निकला है। संगीत पर रहेगी रोक: इस दौरान किसी भी तरह के वाद्य यंत्र, साउंड सिस्टम और जुलूस पर पूरी तरह से रोक रहेगी। साथ ही पांडु बंदरगाह से कामाख्या मंदिर जाने वाले रास्ते को पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा। तीर्थयात्रियों को कामाख्या मंदिर जाने के लिए ऐतिहासिक मेखला उजुआ मार्ग (विश्वकर्मा मंदिर के पास वाली सड़क) का इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। सुरक्षा के रहेंगे पुख्ता इंतजाम:
सुरक्षा के लिए ४० स्काउट-गाइड, १५० स्वयंसेवक और २५० अस्थायी सुरक्षाकर्मी नियुक्त किए जाएंगे। साथ ही पूरे मंदिर परिसर में ५०० सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। मंदिर के २०० स्थायी सफाई कर्मचारियों के अलावा ११० अस्थायी कर्मचारी भी सफाई के लिए नियुक्त किए गए हैं।

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